• कविता

    *आखिर कब आओगे*

    त्रेता बीता, द्वापर बीता, कलयुग ने पांव पसारा है, आखिर कब आओगे सतयुग मेरे? चहुंओर विकृत नजारा है l अत्याचार, व्यभिचार, वासनाओं… का अब यहां रेला है, पग-पग छलता मुखड़ा जो पहने सज्जनता का चोला है l कलयुग ने पांव पसारा है, आखिर कब आओगे सतयुग मेरे? चहुंओर विकृत नजारा हैl ईर्ष्या -द्वेष, घृणा… वश मन ने मानव हृदयाघात खेला है, प्रेम स्वार्थ पर टिका हुआ ‘मैं’, ‘मेरा सब’ का मेला है l कलयुग ने पांव पसारा है, आखिर कब आओगे सतयुग मेरे? चहुंओर विकृत नजारा है l

  • कविता

    शिक्षा

    शिक्षा कुछ करना सिखाती है आगे बढ़ना सिखाती है गलत से लड़ना सिखाती है मातृभूमि पर मरना सिखाती है भेदभाव मिटाती है प्रेम का दीप जलाती है मदद का भाव जगाकर सबको अपना बनाती है । महत्व सबसे बड़ा है जीवन में इसका, ना जाने कौन सा दिन अंत हो किसका । कुछ करके ही जाना है, जाने से पहले कुछ पाना है । ऐसा कर जाओ मेरे साथी ना आपसी द्वेष हो ना जाति- पाँति का निशान हो, बस दिलों में प्यार और चेहरे पर मुस्कान हो।

  • कविता

    पापा की परछाई

    पापा की प्यारी होती है पर बेटी तो पराई होती है। रंगों से पहचान कराया आँखों में दुनिया का रंग दिखाया जब गिर रही थी हाथ देकर अपना मुझे फिर से उठाया उम्मीद की राह पर फिर से चलना सिखाया… उठ खड़ी हुई लड़खड़ाते कदम से उस हाथ ने मुझे खड़े होने की ताकत दी जो सदैव मेरे सिर पर था कदम बढ़ाया उस राह में जहाँ मुझे जाना था तैरना न आता था! पता नहीं था बिना पुल के नदी का पार कैसे पाना था… आँखें खुली तो पाया एक ऐसे स्थान पर जहाँ से मैं अनजान शायद यहीं ईश्वर को पहुंचाना था कड़क धूप में खड़ी बीच राह…

  • कविता

    सुहानी शाम

    सुहानी शाम की बातें कैसे आज मैं भूलूं वे कितनी प्यारी होती थीं। जब बैठते थे एकजुट हो अपने आंगन में, दिल के हालचाल की बस यहां तो बातें होती थीं, कभी पकौड़े, कभी समोसे साथ में चाय की प्याली भी होती थी। सुहानी शाम की बातें कैसे आज मैं भूल वे कितनी प्यारी होती थीं। समय था दर्द बांटने को उस शाम के मंजर में, दिलों से दूरियां मिटाने की यहां तो बातें होती थीं, कभी तू हंस ले कभी मैं रो लू, वह जज़्बातों की मुलाकातें भी होती थीं। सुहानी शाम की बातें कैसे आज मैं भूलूं वे कितनी प्यारी होती थीं। आज हर शाम में उस शाम…

  • कविता

    प्रथम गुरु

    माँ ….. शब्द में ही पवित्रता मेरे जन्म के लिए कितनी प्रार्थनाएं की फिर नौ महीने मेरी सलामती की साधना की आंखें मेरी खुली तो जैसे स्वर्ग उसने पाया देख मुझे उसकी ह्रदय में मामृत आया काजल का टीका लगाकर कुदृष्टि से मुझे बचाया रातों में जागकर मुझे सुलाती, लोरी सुनाती…. देख मुझे बस खूब हर्षाती रोना ना वह मेरा सुन पाती छोड़ के काम भागती आती अम्मा बाबा चाचा चाची नाना-नानी मुझे सिखाती रिश्तो की पहचान कराती माँ प्रथम गुरु बन जाती धरती पर सच्चा प्रेम देखना है तो माँ का रूप देखो स्वार्थ का पूर्णता त्याग मिलेगा ममता स्नेह दुलार मिलेगा कोई माता दरिद्र कुरुप जरा- जीण नहीं…

  • विविध

    भारतीय संस्कृति की परंपरागत कला – कोलम (रंगोली)

    संस्कृति व कला के लिए भारत का विश्व में शीर्षस्थ स्थान है और इसका एक उदाहरण तमिलनाडु की प्राचीन परंपरा ‘कोलम’ के रूप में देख सकते हैं जिसे रंगोली भी कहते हैंl कोलम, तमिलनाडु में महिलाएं प्रतिदिन अपने घर के सामने एवं पूजा गृह में बनाती हैंl रंगोली शब्द संस्कृत के ‘रंगावल्ली’ शब्द से उद्धृत हैl भिन्न-भिन्न राज्यों में इसे अलग -अलग नामों से जाना जाता है: तमिलनाडु में कोलम, महाराष्ट्र में रंगोली, कर्नाटक में रंगवल्ली, उत्तरांचल में ऐमण, आंध्र प्रदेश में मुग्गु, केरल में अत्तप्पू आदि l प्राचीन काल से ही लोगों का विश्वास था कि कलात्मक चित्र शुभ के प्रतीक व धन्य -धान्य के परिचायक होते हैंl कोलम…

  • लघु कथा

    कक्षा में एक दिन

    मीरा और उसकी सभी सहेलियां कक्षा में एक साथ बैठकर दोपहर का खाना खाते हैं। एक दिन अचानक किसी कारण मीरा स्कूल नहीं आ पाती। जब वह दूसरे दिन आती है तो खाने के समय में सब लोग रोज की तरह साथ रहते हैं लेकिन वह क्या देखती है कि उसकी एक सहेली दूर अलग बेंच पर खाना खोल कर बैठी है। उसे बहुत अजीब लगता है और वह उससे पूछती है, पार्वती क्या हुआ आज तुम अलग क्यों खाना खा रही ? वह कुछ जवाब नहीं देती। मीरा फिर से पूछती है लेकिन उसकी आंखें आंसू से भर जाती है और वह फिर से जवाब नहीं दे पाती। मीरा…

  • लघु कथा

    आशीर्वाद

    रात के लगभग एक बज रहे हैं… अचानक खाँसी शुरू हो जाती है और इतना जोर पकड़ती है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही। बुढ़ापे की मार के साथ हाथ– पैरों ने भी काम करना छोड़ दिया है…..पास में रखे लौटे का पानी भी खत्म हो चुका है…. परेशान, व्याकुल, लाचार मां करें तो क्या करें….. तभी खाँसी की आवाज सुनकर बेटा जाग जाता है और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए पैर रखता है कि…. बहू; कहां जा रहे हो इतनी रात में? बेटा; मां को बहुत खाँसी हो रही है परेशान हैं, उनके पास जा रहा हूं। बहू; चुपचाप सो जाओ। बेटा; बहुत ज्यादा…

  • कविता

    प्रेममयी श्रृंगार करो

    दिव्य ज्योति भर, नवभारत माँ का प्रेममयी श्रृंगार करो। भेद-भाव सब दूर करो, एकत्व शक्ति संचार करो।। बदलेगा मौसम हृदय का, प्रेममयी बरसातें होंगी, महकेगी बगिया फूलों की, भोंरो की गुंजारे होंगी। बीत चुके सत्तर बरस, अब तो आज़ादी का भान करो द्वेष-भाव सब दूर करो, एकत्व शक्ति संचार करो।। स्वर्ग भूमि बन जाएगी जब, जाति-पाँति सब मिट जाएगा, होगा अनोखा देश जहाँ का, जब ‘मैं’ शब्द मिट जाएगा। स्वयं शक्ति उद्गार करो, संत वाणी का अनुसार करो हीन-भाव सब दूर करो, एकत्व शक्ति संचार करो॥ रूप-रंग-भाषा अनेक, हैं भारत माँ के लाल सभी, आन पड़ी जब लालों ने, दे दी अपनी जान वहीं। उनको शत्-शत् प्रणाम करो, तुम मातृभक्ति…

  • लेख

    नारी- पुरुष समान हैं और भिन्न भी

    नारी एक ऐसा रहस्य है जिसे सभी ने अपने- अपने दृष्टिकोण से जानने का प्रयास किया और उसे परिभाषित किया। यदि हम आज की बात करें तो हर कोई नारी उत्थान और उसकी समस्या पर चर्चा कर रहा है। कभी नारी की पारिवारिक स्थिति को बदलने और उसे परिवार, समाज मे सम्मान, उचित स्थान दिलाने तो कभी पुरुषों से तुलना करते हुए समानता के अधिकार की बात की जा रही है। नारी प्रारंभ से ही पुरुष के समान है। उसकी सहभागिता प्रत्येक स्थान पर उतनी ही है जितनी पुरुष की। यहां तक कि वेद-पुराणों और शास्त्रों में उसका स्थान सर्वोपरि बताया गया है। नारी को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ स्थान…