लघु कथा

आशीर्वाद

रात के लगभग एक बज रहे हैं अचानक खाँसी शुरू हो जाती है और इतना जोर पकड़ती है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही। बुढ़ापे की मार के साथ हाथ पैरों ने भी काम करना छोड़ दिया है…..पास में रखे लौटे का पानी भी खत्म हो चुका है…. परेशान, व्याकुल, लाचार मां करें तो क्या करें….. तभी खाँसी की आवाज सुनकर बेटा जाग जाता है और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए पैर रखता है कि….

बहू; कहां जा रहे हो इतनी रात में?

बेटा; मां को बहुत खाँसी हो रही है परेशान हैं, उनके पास जा रहा हूं।

बहू; चुपचाप सो जाओ।

बेटा; बहुत ज्यादा ही हो रही है।

बहू; वह तो रोज रात में होती है, क्यों अपनी और मेरी नींद डिस्टर्ब कर रहे हो।

बेटा भी चुपचाप आकर लाइट बंद करके सो जाता है। अचानक खासी की आवाज बंद हो जाती है। बेटा फिर से लाइट जला कर बैठ जाता है और सोचता है….. खासी बिल्कुल बंद कैसे हो गई? तभी

बहू कहती है ; अब क्या हुआ?

बेटा; कुछ नहीं। मैं जाकर देखता हूं। तुम्हें सोना है तो तुम सो जाओ।

फिर बहू भी उठकर साथ जाती है। यह दोनों क्या देखते हैं…. मां अपने पास बैठी लड़की से कहती है; आज मेरे बहू- बेटा दिन भर काम करके शायद ज्यादा थक गए होंगे इसलिए गहरी नींद में सो गए। वे बहुत अच्छे हैं, मेरा बहुत ख्याल रखते हैं और मेरी बहू का तो जवाब ही नहीं….. समय समय पर मुझे चाय पानी के लिए पूछती रहती है और मेरी बहुत सेवा करती है। मेरी बहू साक्षात लक्ष्मी है यदि वह मेरी खाँसी की थोड़ी सी भी आवाज सुनती तो तुरंत दौड़कर मेरे पास आती। बेटा इतनी रात में, मैंने तुम्हें परेशान किया मुझे माफ करना । तुम तो हमारे यहाँ किराए पर रहती हो फिर भी तुमने आकर मुझे पानी पिलाया मेरे साथ इतना अपनेपन का भाव दिखाया, उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। तुम्हारा जीवन सदा खुशियों से भरा रहे। ईश्वर सदैव तुम्हारी रक्षा करे। यह सब बातें सुनकर बेटा- बहू दोनों की आंखें नम हो गई। वे उसी समय मां के पास जाकर रोने लगे और क्षमा मांगने लगे। मुस्कुराते हुए, मां अपनी नम आंखो से दोनों के सिर पर हाथ रखकर ढेर सारा आशीर्वाद देने लगी।

अखिल भारतीय माँ शकुंतला कपूर स्मृति सम्मान के अंतर्गत श्रेष्ठ लघुकथा के रूप में पुरस्कृत

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *