कविता

प्रेममयी श्रृंगार करो

दिव्य ज्योति भर, नवभारत माँ का

प्रेममयी श्रृंगार करो

भेद-भाव सब दूर करो,

एकत्व शक्ति संचार करो।।

बदलेगा मौसम हृदय का,

प्रेममयी बरसातें होंगी,

महकेगी बगिया फूलों की,

भोंरो की गुंजारे होंगी

बीत चुके सत्तर बरस,

अब तो आज़ादी का भान करो

द्वेष-भाव सब दूर करो,

एकत्व शक्ति संचार करो।।

स्वर्ग भूमि बन जाएगी जब,

जाति-पाँति सब मिट जाएगा,

होगा अनोखा देश जहाँ का,

जब मैं शब्द मिट जाएगा

स्वयं शक्ति उद्गार करो,

संत वाणी का अनुसार करो

हीन-भाव सब दूर करो,

एकत्व शक्ति संचार करो

रूप-रंग-भाषा अनेक,

हैं भारत माँ के लाल सभी,

आन पड़ी जब लालों ने,

दे दी अपनी जान वहीं

उनको शत्-शत् प्रणाम करो,

तुम मातृभक्ति सम्मान करो

ऊँच-नीच का अंत करो,

एकत्व शक्ति संचार करो

रहेंगे सब मिलकर तो

केसरिया मूल चुक जाएगा,

होगी धानी चूनर माँ की,

श्वेत कपोत उड़ जाएगा

मतभेद हृदय के दूर करो,

एकत्व शक्ति संचार करो,

दिव्य ज्योति भर, नवभारत माँ का

प्रेममयी श्रृंगार करो।।

(अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में केंद्रीय हिंदी निदेशालय व पंजाब एसोसिएशन द्वारा पुरस्कृत कविता 2017)

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