भारतीय संस्कृति की परंपरागत कला – कोलम (रंगोली)
संस्कृति व कला के लिए भारत का विश्व में शीर्षस्थ स्थान है और इसका एक उदाहरण तमिलनाडु की प्राचीन परंपरा ‘कोलम’ के रूप में देख सकते हैं जिसे रंगोली भी कहते हैंl कोलम, तमिलनाडु में महिलाएं प्रतिदिन अपने घर के सामने एवं पूजा गृह में बनाती हैंl
रंगोली शब्द संस्कृत के ‘रंगावल्ली’ शब्द से उद्धृत हैl भिन्न-भिन्न राज्यों में इसे अलग -अलग नामों से जाना जाता है: तमिलनाडु में कोलम, महाराष्ट्र में रंगोली, कर्नाटक में रंगवल्ली, उत्तरांचल में ऐमण, आंध्र प्रदेश में मुग्गु, केरल में अत्तप्पू आदि l
प्राचीन काल से ही लोगों का विश्वास था कि कलात्मक चित्र शुभ के प्रतीक व धन्य -धान्य के परिचायक होते हैंl कोलम बनाने की यह सुप्रसिद्ध परंपरा आज भी गांवों और शहरों में प्रचलित हैl गांव में, आंगन को गोबर से लीपकर कोलम बनाते हैंl क्योंकि गोबर में विषैले कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति समाहित होती है l धार्मिक, सांस्कृतिक, आस्थाओं….. का प्रतीक होने के साथ-साथ यह माना जाता है कि कोई भी बुरी शक्ति घर के अंदर प्रवेश करने में असमर्थ होती हैl
कोलम एक प्रकार का शारीरिक व मानसिक व्यायाम भी हैl झुककर, इधर-उधर मुड़ने के साथ शारीरिक व्यायाम है तो कई अन्य बिंदुओं को जोड़कर एक सुंदर आकृति का रूप देना मानसिकl इस पद्धति से बनाए जाने वाले कोलम को पुल्लिक कोलम या सिक्कल कोलम भी कहते हैंl कोलम बनाने के लिए चावल का पाउडर, सफेद पत्थर का पाउडर, अलग-अलग रंगों के साथ त्योहारों एवं पूजा स्थल पर गेरू का भी प्रयोग किया जाता हैl
रंगोली पुल्लिक कोलम, हृदयकमलम, पूकोलम, नवग्रह कोल्लम आदि भिन्न-भिन्न नामों के साथ विशेष आकृति में बनाई जाती है l महाराष्ट्र के नागपुर की रहने वाली वंदना जोशी ने पानी के ऊपर सबसे बड़ी रंगोली बनाकर विश्व की पहली महिला के रूप में ‘गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड’ में अपना नाम दर्ज कराया l
भारत में इस सुंदर अद्भुत कला की रक्षा और विकास में महिलाओं का योगदान सदा ही रहा हैl परंतु आज इसका प्रयोग कम होता जा रहा हैl अतः देश की महिलाएं अपनी इस कुशल प्रतिभा को भविष्य के लिए संजोकर देश की समृद्धि और इस अमूल्य धरोहर की रक्षा कर सकती हैंl