सुहानी शाम
सुहानी शाम की बातें
कैसे आज मैं भूलूं
वे कितनी प्यारी होती थीं।
जब बैठते थे एकजुट हो
अपने आंगन में,
दिल के हालचाल की बस
यहां तो बातें होती थीं,
कभी पकौड़े, कभी समोसे
साथ में चाय की
प्याली भी होती थी।
सुहानी शाम की बातें
कैसे आज मैं भूल
वे कितनी प्यारी होती थीं।
समय था
दर्द बांटने को
उस शाम के मंजर में,
दिलों से दूरियां
मिटाने की
यहां तो बातें होती थीं,
कभी तू हंस ले
कभी मैं रो लू,
वह जज़्बातों की
मुलाकातें भी होती थीं।
सुहानी शाम की बातें
कैसे आज मैं भूलूं
वे कितनी प्यारी होती थीं।
आज हर शाम में
उस शाम को
ढूंढती हूं मैं,
दर्द में सिमटे
दिल की अकेले
यहां तो बातें होती हैं,
कभी खोलूं ये आंखे
कभी मैं बंद भी कर लूं,
भरे आंगन की वो यादें
यहां तो सामने होती हैं।
सुहानी शाम की बातें
कैसे आज मैं भूलूं
वे कितनी प्यारी होती थीं।