• कविता

    प्रेमचंद – साहित्य का सूरज यथार्थ का साथी

    न अपने लिए लिखा न औरों के लिए, लिखा उस दिल के लिए जिसने दर्द को छुआ । किया संघर्ष उस मझधार में जहां अक्सर डूब जाती है नैया, विश्वास लगन ने मंजिल दी हौंसले थे खेवैया । दर्द को जाना था इसलिए पहचाना था, स्वयं को कलम का मजदूर बताकर बदला साहित्य का जमाना था । कुरीतियों का तिरस्कार किया स्वयं को आगे कर, बाल विधवा से पुनर्विवाह किया । सम्राट यूं ही नहीं बन गए, कितनी तपस्याएं की मुश्किलें उठाई, उलझनें सुलझाईं । देखो निर्मला को- जहां बेमेल विवाह दिखाया, वही कैसे उसने अपना उत्तरदायित्व निभाया । होरी को देखो- किसान का सच दिया, वही अपने मालिकों का…