कविता

बदल जाने दो सब

अपनी वाही-वाही के लिए लड़ते हो,
कभी झूठ, कभी दिखावा का चोला पहनते हो,
तुम्हारा साक्षी तुम्हें कैसे माफ करता है,
सत्य जानकर भी असत्य स्वीकार करते हो।
थोड़ा इतिहास के पन्ने पलट लो,
ऑखें खोलो स्मरण कुछ कर लों
भूखे लड़े, प्यासे मरे,
इस देश के लिए हॅसकर फॉसी चढ़े,
क्या रिश्ता था हमसे
वाह ! क्या रिश्ता था वतन से ।
दूसरों के लिए जिए,
जीवन हमें बता अमर हुए।
और हम जीकर भी रोज मरते हैं,
स्वार्थ के कीचड़ से,
स्वयं को बदरूप, बदरंग
और दुर्गंध भरते है ।
मानवता अब तो जगाओ ।
कब तक मुखौटा पहनोगे
अब तो उतारो,
अपने सत् रूप को
जानो, पहचानो और इस
सुंदरता को बिखर जाने दो ।
आंगन, गलियारे प्रेम
की खुशबू से महक जाने दो ।
बदल जाने दो सब
नया जहॉ का नया रूप
अब चमक जाने दो ।

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