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संघर्ष ही शक्ति
बिखरी लालिमा नभ-धरा परबढ़ते कदम सब थम गए,जो जहाँ थे खड़े वहीं परसबके सब पिघल गए ।कोई घर से दूर तो कहींमाँ-बाप की चिंता सता रही,मिलने की है आस परनिराशा हाथ आ रही ।कुछ ऐसा मंजर बदल गयाघर के अंदर सब ढल गया,जन्मा ऐसा राक्षस जग मेंनिगल रहा दुर्बल को पल में।हाहाकार यूँ मच रहाजिसको छुआ वो सिहर रहा,जीवनभर जिसने साथ दियातन वह लावारिस हुआ ।हर रिश्ता अब दूर हुआहालात से मजबूर हुआ,बच्चों की हँसी गुम हो गईचार दीवारों में फँस गई ।रोज़ आमदनी पर जो निर्भरजीवन हुआ बहुत ही दुर्लभ,ठहर गया ये मानव जीवनप्रतीक्षा में बैचेन हुआ मन।हवा भी विषमुक्त हो गईप्रकृति सबसे कुछ तो कह रही,पशु-पक्षी स्वतंत्र हो…
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सृष्टि की श्रेष्ठ रचना
नारी एक ऐसा रहस्य है जिसे सभी ने अपने -अपने दृष्टिकोण से जानने का प्रयास किया। वेद-पुराणों और शास्त्रों में उसका स्थान सर्वोपरि बताया गया है।“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है। वह संपूर्ण सृष्टि में एकमात्र ऐसी रचना है जो प्रेम, करुणा, दया, धैर्य, सहनशीलता, क्षमा आदि सद्गुणों से पूर्ण है। जिसे वह अर्जित नहीं करती अपितु यह उसके मूल प्रवृति में समाहित होते हैं। वह इन गुणों के साथ जहां भी वास करती है वह स्थान पवित्र, सुखमय, आनंदपूर्ण, वैभवशाली, समृद्धि, शांतिपूर्ण में परिवर्तित हो जाता है। नारी अपने इतने रूपों को धारण करती है कि संसार में उसके समान…
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संत साहित्य की वर्तमान प्रासंगिकता (संत रामानन्द)
संत रामानन्द कहते हैं अति किसी की भी अच्छी नहीं होती, बदलाव संसार का नियम है…. ऐसे ही एक बदलाव की आवश्यकता थी समाज को जब जाति-पाँति, ऊंच-नीच, छुआ-छूत जैसी बीमारियों ने चारों ओर अपने पैर फैला लिए थे। सांप्रदायिकता, धर्म- अधर्म और धर्म बदलाव जैसे घातक विचार से समाज ग्रसित हो रहा था। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है;यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥१धर्म की हानि हो और ईश्वर चुपचाप देखता रहे, ऐसा असंभव है! अतः समाज में बदलाव होना ही था और इस बदलाव का बीज बोया संत रामानंद जी ने, जो ईश्वर के अवतार रूप में प्रकट हुए। बुद्ध हो या महावीर,…