कविता

त्योहार अपनी मिट्टी का

त्योहार अपनी मिट्टी का
रंग और गुलाल का
प्रेम का सौहार्द का
खुशियों और उल्लास का।
लाल-हरा ये नीला-पीला
रंग गुलाबी सबसे रंगीला
धरा-गगन पर जब ये बिखरे
बन जाएँ इंद्रधनुष ही कितने।
मनमुटाव, रंजिशें गहरी
भस्म कर देती होली की अग्नि
सूरज चिढ़ता आज देख नज़ारा
फीका उसका रंग होली ने कर डाला।
होती नयी सुबह गले से गले मिल
चारों ओर ढोल-बाजे की धुन
गुजिया, हिस्से, लड्डू की मिठास
घुल जाती हर मन में, बढ़ जाती आस।
रंग आज नहीं पिचकारी में तो क्या
भर लो इन्हे अब अंतर्मन में
डालो सबके सुंदर मन में
ऐसा अद्भुत रंग चमकेगा
जैसे नाचे मोर बिखेर पंख वन में।

29,मार्च 2021 राजस्थान पत्रिका, चेन्नई में प्रकाशित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *