कविता

बलिदानी शीश

मज़लूमों की रक्षा हेतु
प्राण त्याग को आतुर थे,
हिंद के पीर, शूरवीर
गुरु हरगोविंद सुत, तेग बहादुर थे।

माँ ‘नानकी’, ‘गुजरी’ पत्नी को
ब्रह्मज्ञान दे अलख जगाया,
ऐसा पहली बार हुआ जब
स्वयं शहीदी को कदम बढ़ाया।

किया ऐलान – ‘धर्म न बदलेगा’
सुन ले तू अब औरंगजेब!
अपनाएंगे इस्लाम सभी जब,
पहले अपनाएगा तेग!!

बौखलाए दुष्ट ने पहले
भाई सिक्ख ‘मती’ को
आरे से कटवाया,
देख न बदल रुख ‘तेग’ का,
‘दयाला’ जिंदा जलाया,
‘सती’ खोलते पानी में डलवाया।

पग न हिला, वचन न डुला,
दिया शीश बलिदान,
वह ‘शीशगंज’ महान है,
‘सिंह’ गुरु गोविंद फिर जग आया
सर्वव्याप्त ‘परमात्म’ गुरु
जैसे प्रकाशित भानु है।

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