सब कुछ मिल गया
शाम को जॉब से लौटते समय भाई ने फोन किया और कहा कि दीदी थोड़ा तैयार रहना, मेहमान आ रहे हैं। मैंने कई बार पूछा कि कौन आ रहे हैं? भाई बोला कि बहुत स्पेशल हैं। मैं बहुत उत्सुक थी कि कौन मेहमान आ रहे हैं, कोई उसके सीनियर ऑफिसर आ रहे हैं या कोई और….? इंतजार करते-करते काफी समय बीत गया। फिर फोन आया….
भाई – दीदी आप फर्स्ट फ्लोर से नीचे सड़क पर आ जाइए।
मैंने कहा – इतने बड़े मेहमान हैं कि उनका स्वागत सड़क पर जाकर ही करना पड़ेगा।
मैं और मेरे पति दोनों ही नीचे पहुँचे तो देखा कि वह बाइक पर अपने दोस्त के साथ है और साथ में एक सफेद पोमेरेनियन डॉगी भी है। भाई मुझे देखकर बहुत मुस्कुराने लगा। मैं पूरी बात समझ गई।
मैंने कहा – यही मेहमान हैं, तुम कहाँ से पकड़ लाए?
भाई – जब मैं ऑफिस से आ रहा था, रास्ते में यह सड़क पर इधर-उधर भटक रहा था, लगा किसी का पालतू है, कहीं किसी गाड़ी के नीचे दब न जाए। कहाँ छोड़ दूँ, मुझे समझ नहीं आ रहा था, आसपास की बिल्डिंग में पूछा भी, लेकिन सभी ने मना कर दिया। मुझे कुछ नहीं सूझा और मैं आपके पास ले आया।
कुछ समझ में नहीं आ रहा था, ये फ्लैट, घरों से थोड़ा अलग होते हैं… और इसमें उसे कहाँ रखा जाए, फिर भी उसे हॉल के अंदर बाँध दिया। उसे दूध दिया, खाना दिया लेकिन वह कुछ भी नहीं खा रहा था। वह बहुत उदास था, आँखों से आँसू बह रहे थे। उसे इस तरह देखकर, हमें भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। सुबह ससुर जी ने भी उसे देखा और कहने लगे – यह रात में कहाँ से आ गया, रख लेते हैं, पहले भी हमने कुत्ता रखा है। लेकिन परेशानी यह थी कि अब इस फ्लैट में उसे रखेंगे कहाँ, क्योंकि उसके लिए कोई ऐसी अलग जगह नहीं थी। इससे भी ज्यादा चिंता इस बात की हो रही थी कि उसने रात से कुछ भी नहीं खाया था, यहाँ तक कि पानी भी नहीं छू रहा था। बाद में निर्णय हुआ कि हम, इसे ब्लूक्रॉस में दे देते हैं। सुना है, वहाँ कुत्तों की देखभाल अच्छे से होती है।
मन नहीं मान रहा था, सुबह 7:30 बजे हम, डॉगी को ब्लूक्रॉस में देने के लिए, बाइक से निकल गए। पता नहीं क्यों, मन बहुत अशांत था और डॉगी बहुत शांत-चुपचाप। उसके आँखों से लगातार पानी बहता जा रहा था, कल से पानी तक भी नहीं पिया था उसने। मैंने, पति से कहा – क्यों न एक बार उसी जगह पर जाकर, उसके घर पर पहुँचाने का प्रयास किया जाए। जिस तरह से खा-पी नहीं रहा और अपने घर को याद कर रहा है, पता नहीं इस तरह ब्लूक्रॉस में, क्या यह जिंदा भी रह पाएगा? क्या हम एक बार इसे, इसके घर पर पहुँचाने का प्रयास नहीं कर सकते?
मेरी बात सुनकर पति कहने लगे – आजकल खोए इंसान को तो उसके घर पहुँचाना मुश्किल है, एक कुत्ते को कैसे पहुँचाएंगे?
मैंने कहा – एक बार तो कोशिश कर ही सकते हैं, जीवन में ये सोच तो नहीं रह जाएगी……।
वे तैयार हो गए। भाई से उस जगह का पता पूछकर, जहाँ से वह डॉगी उसे मिला था, उसके घर की खोज में आगे बढ़ गए।
18 किलोमीटर दूर, हम वहाँ पहुँचे, जहाँ से वह मिला था। वहाँ उसे खुला छोड़ दिया, लग रहा था कि यह उसकी जानी-पहचानी जगह है। हर दुकान पर, हर गली में, हम जा रहे थे और लोगों से पूछ रहे थे – “यहाँ आसपास किसी का कुत्ता खोया है क्या, कोई पूछने आया क्या?” लेकिन किसी ने नहीं बताया कि हाँ, किसी का कुत्ता खो गया है।
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हम, कभी सड़क के इस पार, कभी सड़क के उस पार होते थे। बड़े-बड़े शहरों में कुछ न कुछ नया दिखता ही रहता है। ये जगह भी कुछ नया दिखा रही थी। हाईवे के एक और सामान्य कॉलोनियाँ थीं, वहीं दूसरी ओर विदेश जैसा नज़ारा – बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, बड़ी-बड़ी पार्किंग और बाहर बड़े-बड़े गेट, जहाँ बैठे यूनिफॉर्म में वॉचमैन। कॉलोनी में जहाँ घर-घर जाकर, दुकानों पर जाकर पूछ रहे थे, वहीं दूसरी ओर बड़ी हिचकिचाहट के साथ बड़ी बिल्डिंग के चौकीदारों से, परंतु उत्तर ‘हाँ’ में कहीं से नहीं मिल रहा था।
प्रयास अभी समाप्त नहीं हुआ था, पूछते हुए एक दुकान पर पहुँचे। दुकान वाले ने डॉगी को एक बिस्किट दिया। बड़े अचरज की बात थी कि उसने, उस बिस्किट को आधा खाकर छोड़ दिया। उसी समय दुकान वाले की स्त्री निकल कर आई और तुरंत कहने लगी – “हम बहुत कुत्तों को पालते हैं, यदि यह किसी का खो गया है तो हम रख लेंगे।” हमने थोड़ी देर सोचा भी कि हमें छोड़ देना चाहिए लेकिन मन नहीं मान रहा था कि इतनी देर तक घर ढूँढ़ा तो क्यों न कुछ और प्रयास किया जाए। हमने, उनसे कहा – ठीक है, यदि इसको अपना घर नहीं मिलेगा तो हम आपको दे देंगे।
उसके बाद हम सड़क की दूसरी और पहुँचे। वहाँ भी पूछने लगे। किसी ने बताया इसे उधर देखा है, यह उधर रहता है। हम उसी के अनुसार इधर-उधर, जहाँ जो कोई बताते, वहाँ पूछते – “आपका डॉगी खोया है क्या?” लेकिन यह, उनका कुत्ता नहीं होता था। फिर से एक दुकान वाले से हम पूछने लगे – “आपने इसको यहाँ आस-पास कहीं देखा था क्या, कोई पूछने आया कि किसी का कुत्ता खो गया है?”
दुकानदार (महिला) – नहीं, यहाँ तो किसी का नहीं खोया, लेकिन हमें कुत्ता रखने का शौक है। आप हमें दे दीजिए, हम इसे बहुत अच्छे से पालेंगे। (पति-पत्नी दोनों ही दुकान पर बैठे थे। वे, डॉगी को खाने के लिए कुछ-कुछ डालने लगे। उसने बिल्कुल भी खाने की चीज को नहीं छुआ। वे लोग उसे पकड़र प्यार करने लगे।) हम दोनों भी बिना मन के वापस होने लगे कि बहुत समय हो गया, क्या किया जाए?…. (लगभग 12:00 बज चुके थे, पति को ऑफिस देर से आने की अनुमति लेनी पड़ी।) हम दोनों बाइक पर जाने के लिए जैसे ही तैयार हुए, वह बहुत जोर से उस महिला पर गुर्राकर, उसे झटका देकर भागा और बाइक के पास आकर, हमारे साथ चलने के लिए इशारा करने लगा। यह देख मेरे मन को एक अज़ीब सा एहसास हुआ, वो व्याकुलता अचानक जैसे समाप्त हो गई। मैंने कहा – नहीं! एक बार और हमें, अंतिम कोशिश करनी है। शायद, यह अब हमें खोना नहीं चाहता। यदि इसका घर नहीं मिलेगा तो हम ही इसको रखेंगे। शायद, इसे भी हमपर विश्वास हो गया है कि हम, इसके घर तक पहुँचाने में कामयाब होंगे।
हमने फिर से उसके घर को ढूँढ़ना शुरू किया। फिर से वहाँ पहुँचे, जहाँ उसके सूँघने के तरीके से और उसके आस-पास घूमने के तरीके से, हमने थोड़ा सा आभास किया था। ढूँढ़ते हुए, हम एक बार फिर एक दुकान के पास पहुँचे और उस दुकान वाले से पूछा – “क्या यहाँ आस-पास किसी का कुत्ता खोया है?” उस दुकान वाले ने कहा – हाँ, कल शाम को कोई आए तो थे। वह पूछ रहे थे कि हमारा कुत्ता देखा है, सफेद रंग का पोमेरेनियन है? यह उत्तर सुन हम उत्सुक हो गए, हमने पूछा – उनका घर कहाँ है? दुकान वाले ने साफ मना कर दिया और कहा – घर नहीं पता। शायद, पिछली गली में, यहाँ कभी-कभी सामान खरीदने आते हैं।
यह ज़बाब, हमारे लिए उम्मीद नहीं, मंजिल था। हम फिर से डॉगी को लेकर आगे बढ़ने लगे। कुछ दूर बढ़े ही थे कि तभी एक आवाज़ सुनाई दी, सुनिए! सुनिए! पीछे मुड़कर देखा तो दुकानवाला, हमें बुला रहा था। हम तुरंत लौटे। उसने बताया कि यही पूछ रहीं थीं कल…..(एक लड़की की ओर इशारा करते हुए)। वह लड़की, डॉगी को देखकर खुश हो रही थी। डॉगी भी उसके चारों ओर घूमने लगा, उसे प्यार करने लगा। उस लड़की ने बताया – यह हमारी मकान मालकिन का डॉगी है। कल शाम से खो गया। वे लोग परेशान हैं, खाना-पीना भी नहीं खाया है, वे लोग रो रहे हैं। उस लड़की ने हमें अपने साथ चलने के लिए कहा। हम घर पहुँचे जो ठीक अगली गली में था। डॉगी तो पहले ही हम सबको छोड़कर अंदर भाग गया। उस लड़की ने मकान मालकिन को आवाज लगाई, पूरा परिवार बाहर निकलकर आया। (डॉगी तो उनके चारों तरफ चक्कर काट रहा था, बहुत खुश था, कभी उछलता, कभी प्यार करता….) वे, हमें अंदर बुलाकर ले गए, हमें बैठने के लिए कहा और हमारे लिए चाय भी बनवाई। घर की मालकिन ने बताया कि उसे अपने बच्चों की तरह 14 वर्ष से पाला है। कल शाम को जब उनका बेटा जॉब के लिए निकला तो ये भी पीछे निकल गया और रास्ता भटक गया। हमने कल से बहुत ढूँढ़ा परंतु कहीं नहीं मिला। वे पूछने लगीं – आपको कहाँ मिला? मैंने, उन्हें अपने भाई की बात बताई।
उन्होनें हमें कई बार धन्यवाद कहा। उनका धन्यवाद, हमें आशिर्वाद मिलने जैसी अनुभूति करा रहा था। वे धन्यवाद कहते – कहते, हमें कुछ रुपये देने के लिए कहने लगीं। मेरे पति ने तुरंत हाथ जोड़कर उन्हें इस तरह रुपए की बात करने से मना कर दिया। मैं भी रुपए-पैसे जैसी बात सुनकर दंग सी रह गई, क्योंकि आज हमें वो मिला था जिसकी तुलना रुपए-पैसे क्या किसी से भी नहीं की जा सकती। वह अहसास, नि:शब्द है।
हम देख रहे थे, वह कितना खुश था और उससे भी ज्यादा घर के सभी लोग। सभी, उसे वेंज़ी-वेंज़ी कहकर बुला रहे थे और उसके साथ खेल रहे थे। वह एक-पल में इधर, एक-पल में उधर, चारों तरफ घूम रहा था। हमने कहा कि उसने कुछ नहीं खाया है, पहले उसे कुछ खाने दे दीजिए। लेकिन लग रहा था कि खाने से ज़्यादा उसे अपनों की जरूरत थी, जो उसे मिल चुके थे और वही उसका जीवन था। उन्होंने जैसे ही खाने के लिए सामने दूध रखा, वह तुरंत पीने लगा। उसे अब सब कुछ मिल चुका था। उसी पल हमें भी जैसे सब कुछ मिल गया था। उसे अपना घर वापस पाने की खुशी, आज भी हमारे हृदय को संतुष्ट और जीवन को पूर्ण कर देती है।
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‘एकेडमिक जगत’ साहित्य और शोध की द्विभाषिक मासिक पत्रिका, दिल्ली, ISSN : 2582-4775, अप्रैल-जुलाई, 2021 में प्रकाशित।