लेख

‘गोशाला’ से पवित्र स्थल, दुनिया में कहीं भी नहीं…

महर्षि वशिष्ठ जी ने कहा है – “गाव: स्वस्त्ययनं महत्” अर्थात् ‘गो मंगल का परम् निधान है।’ जहाँ गोमाता का पालन-पोषण भली-भाँति नहीं होता, वहाँ अमंगल दशा देखने को मिलती है और जहाँ गोमाता की पूजा होती है, वहाँ संपन्नता व आनंद की वर्षा होती है। यही कारण था कि पूर्वकाल में राजा गोधन को ही सर्वश्रेष्ठ मानते थे; गोपूजा, गोदान की प्रथा प्रचलित थी। समय के साथ भारतीय संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ आचरण ‘गोसेवा’ लुप्त होती गई और जिस देश में दूध की नदियाँ बहती थीं, वहाँ गरीबी बढ़ती गई। भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आचार्य विनोबा भावे जी ने कहा है – “हिंदुस्तानी सभ्यता का नाम ही ‘गोसेवा’ है।”
महानगर चेन्नई के बीचो-बीच कोलाहल, भीड़ और भागम-भाग भरे जीवन में एक ऐसा स्थान जहाँ शांति, शुद्धता और संयम प्राप्त हो जाए तो यह आश्चर्य होगा। ऐसा ही स्थान है चेन्नई के पश्चिम मांबलम् में स्थित ‘गो: संरक्षण साला’, जो अपने दाएँ भाग में ‘श्री कांची कमाकोटी पीठम्’ (देवी का मंदिर) और बाएँ भाग में ‘काशी विश्वनाथ मंदिर’ को बसाती है या ये कहें कि स्वयं शिव और शक्ति एक होकर गोशाला के रूप में अपने भक्तों पर प्रत्यक्ष अनुकंपा कर रहे हैं।
लिखित साक्ष्यों के अनुसार, ‘सन् 1962 में कांची परमाचार्य श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती जी ने जब चेन्नई का भ्रमण किया, तब वे इसी स्थान पर ठहरे। उन्होंने, यहाँ जप-हवन किया। उस समय, यह स्थान जंगल के समान प्रतीत होता था। कुछ लोगों ने मिलकर इस स्थान को ठहरने योग्य बनाया; तब श्री परमाचार्य ने यहाँ रहने की इच्छा रखी, जिसका कारण कई वर्षों बाद पता चला।
उस समय सभी घरों में गोमाता का पालन-पोषण किया जाता था। दुधारू गाय के सूख जाने के पश्चात् भी उनकी देखभाल अच्छे से की जाती थी, परंतु समय के साथ यह प्रथा, सेवा-भावना लुप्त होती गई। कोई भी, बूढ़ी गाय या दूध न देने वाली गाय को नहीं रखना चाहता था, इसलिए उनकी हालत समय के साथ बिगड़ती गई। श्री परमाचार्य ने अपनी दिव्यदृष्टि द्वारा इस बिगड़ती स्थिति का पूर्वाभास कर लिया था, अतः उन्होंने अपने भक्तों से इस स्थान को खरीदने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि यहाँ एक गोशाला की स्थापना की जानी चाहिए। उस समय के न्यायमूर्ति कृष्णस्वामी रेड्डी, तमिलनाडु के राज्यपाल प्रभूदास पटवारी और श्री परमाचार्य के भक्तों के प्रयास द्वारा सन् 1978 में ‘माट्टु पोंगल’ के दिन ( तमिलनाडु का मुख्य त्योहार ‘पोंगल’ (मकर संक्रांति) के तीसरे दिन गोवंश की पूजा की जाती है) श्री परमाचार्य द्वारा दी गई 4 गायों के साथ यह शुभ व श्रेष्ठ कार्य सम्पन्न हुआ। इस प्रकार, परमाचार्य श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती जी के आशीर्वाद एवं कृपा से ‘गो: संरक्षण साला’ (गोशाला) के माध्यम द्वारा आज भी गोसंरक्षण व गोसंवर्धन कार्य गतिशील है।’
पिछले 44 वर्षों से गोशाला ने एक ऐसा आदर्श स्थापित किया है जिसका अनुसरण व अनुकरण पूरे तमिलनाडु में किया जा रहा है। यहाँ से उपहार स्वरूप प्राप्त गायों द्वारा लगभग 40 से अधिक गोशालाओं को स्थापित गया किया गया है। गोशाला में सीमित स्थान होने के कारण गोओं को सैकड़ों की संख्या में उचित देखभाल के लिए विभिन्न स्थानों पर भेजा गया है और साथ ही उनके संवर्धन हेतु नई गोशालाओं को भी स्थापित किया गया है। पश्चिम मांबलम्, चेन्नई स्थित गोशाला में लगभग 150 गायें हैं। यहाँ के कई मंदिरों में इसी गोशाला से प्राप्त गोओं को पूजा और देखभाल के लिए रखा जा रहा है। कांचीपुरम के पास अयंगर कुलम् गाँव में 60 गायें, कलवई के पास सुरैयूर में 80 गायें, चेन्नई के केलंबक्कम् पास मांबाक्कम् में 50 पेरियपालयम् के पास 15 गायें, करूर ताल्लुक में तलापालयम् गाँव में 25, दिंडीवनम् के पास कीड़पसार गाँव में 10 और ऊतकोटई के पास देवंदवाक्कम् गाँव में 90 गायों सहित कई गोशालाओं का विस्तार ‘गो: संरक्षण साला’ के माध्यम से किया जा रहा है, जो श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित है।
चेन्नई शहर के बीचो-बीच स्थित गोशाला बहुत ही सुंदर और मन को शांति प्रदान करती है। गायों को समय पर पौष्टिक आहार, अगाती कीरई (पालक/मैंथी की भाँति एक प्रकार का हरा साग) देने की उचित व्यवस्था है। गोशाला में दर्शन हेतु आने वाला प्रत्येक भक्त गोमाता की प्रदक्षिणा करता है, उन्हें अगाती कीरई खिलाता है। बीमार व कमजोर गायों के लिए अलग से सुविधा प्रदान की जाती है। चिकित्सा की भी यहाँ व्यवस्था की गई है। प्रत्येक शुक्रवार को 6:30 बजे से गोपूजा उत्सव मनाया जाता है, जिसमें 100 से भी अधिक लोग भाग लेते हैं। प्रत्येक रविवार को गोशाला में भव्य कार्यक्रम होते हैं, जैसे – भजन-कीर्तन, तुलसी आरती, संध्या आरती, नरसिंह आरती, भगवतगीता की कक्षा एवं गोपूजा की जाती है, साथ ही अंत में प्रसाद दिया जाता है।
‘गो: संरक्षण साला’ मात्र गोशाला नहीं अपितु मंदिर की भाँति ही यहाँ दैनिक नियमों का पालन किया जाता है। गोशाला में प्रतिदिन जप-हवन किया जाता है। प्रतिदिन गोमाता की आरती व निम्न श्लोक द्वारा आराधना की जाती है – “सर्वकामदुधे देवी सर्वतीर्थाभिषेचनि ।
पावनि सुरभिश्रेष्ठे देवी तुभ्यं नमोऽस्तु ते ॥”
(हे सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली दूध की दाता, सभी तीर्थों में स्नान करने का प्रभाव देने वाली; हे परम पवित्र कामधेनु, हे देवी, आपको मेरा नमस्कार।)
गोशाला में प्रवेश करने वाले गोभक्तों को जूते-चप्पल बाहर ही उतारने होते हैं क्योंकि यह स्थान मंदिर से भी ज़्यादा पुण्यतीर्थ कहा जाता है। स्वयं श्री कांची परमाचार्य द्वारा लिखित ‘देवत्तिन् कुरल’ अर्थात् ‘भगवान का स्वर’ में वे कहते हैं – ‘स्वयं (गोमाता) के अंदर उपस्थित द्रव्य; जिससे यज्ञ की रक्षा होती है। यदि गोमाता वह नहीं भी दे; उनकी उपस्थित ही इतनी दिव्य है कि उसमें मंत्रों की रक्षा करने की शक्ति है, इसलिए जो गोशाला में जाप करते हैं; उन मंत्रों का प्रभाव करोड़ों बार ज़्यादा मिलता है। ऐसी गोशाला से पवित्र स्थल दुनिया में कहीं भी नहीं है, क्योंकि गोमाता के अंदर 33 करोड़ देवताओं का वास है। सारे पुण्यतीर्थ गाय के अंदर हैं। हमारे मंदिरों में भी कई देवताओं की मूर्ति स्थापित कर वह स्थान तीर्थस्थल बन जाता है, लेकिन गोमाता में सभी देवताओं का वास है; सारे पुण्यतीर्थ उसमें ही स्थित है, अतः गो एक सचल मंदिर है एवं वह सर्वदेवताओं का भी एक महत्वपूर्ण मंदिर है।’(अनूदित)
महान संत श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती जी ने मात्र 4 गायों से मानव जाति की रक्षा हेतु एक ऐसा बीज बोया जो आज वटवृक्ष के समान चारों दिशाओं में अपनी अनुकंपा बिखेर रहा है एवं आज की पीढ़ी का मार्गदर्शन भी कर रहा है, साथ में यह भी संदेश दे रहा है कि आने वाली पीढ़ी किस प्रकार अपनी संस्कृति, सभ्यता और सदाचार को अपनाते हुए अपने जीवन को सार्थक करने में सफल हो सकती है।
“गाव: प्रतिष्ठा भूतानां गाव: स्वस्त्ययनं महत्।
गावो भूतं च भव्य च गाव: पुष्टि: सनातनी।।”
‘गो मनुष्य के जीवन का अवलंब है, गो कल्याण का परम निधान है; पहले के लोगों का ऐश्वर्य गो पर अवलंबित था, आगे की उन्नति भी गो पर अवलंबित है, गो ही सब समय पुष्टि का साधन है।’

गोसम्पदा, मासिक पत्रिका (विश्व हिंदू परिषद) अप्रैल, 2022 अंक में प्रकाशित।

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