लेख

आत्मनिर्भर भारत

सकारात्मक दृष्टि से आत्मनिर्भर होगा देश

एक दृष्टि हम अपने प्राचीन भारत पर डालते हैं तो पातें हैं कि 2,500 ई.पू. ही हमारे भारत देश में कृषि, मिट्टी के बर्तन बनाने की कला, औजार, आभूषण, मानव निर्मित वस्तुओं तथा मिश्रित धातु की मूर्तियों के निर्माण का कौशल विस्तृत हो चुका था। शहरों का विकास, सिक्कों का इस्तेमाल, शास्त्रों की रचना, ज्ञान-विज्ञान, योग, आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा जैसी अद्भुत क्रियाओं से समृद्ध भारत देश, प्रगति पथ पर बहुत आगे था। विदेशी आक्रमणों का सामना करते-करते देश विकास मार्ग में बाधित होता गया, बढ़ती जनसंख्या, अकाल तथा गरीबी के साथ-साथ अपना देश विदेशी शासकों द्वारा दमन और दरिद्रता का शिकार होता गया।
स्वतंत्रता आंदोलन ने देशभक्ति की भावना के साथ एकता और समर्पण के भाव को प्रेरित किया, साथ ही राजनीति, जनजीवन, संगीत, कविता साहित्य तथा विज्ञान की नई दिशाओं को खोला। इस प्रकार देखें तो भारत समृद्धि से पतन और पतन से पुनः एक बार समृद्धि की ओर संघर्ष करते हुए आगे बढ़ता गया।
भारत देश शिक्षा के क्षेत्र में एवं बौद्धिक बल के स्तर पर सबसे श्रेष्ठ रहा। ए. शिवताणु पिल्लै द्वारा हिंदी अनूदित ‘मेरे सपनों का भारत‘, ए. पी. जे. अब्दुल कलाम’ में उद्धृत किया गया है – “भारत ने शून्य का आविष्कार किया जिसने गणना की दोहरी प्रणाली की आधारशिला रखी जिस पर वर्तमान कंप्यूटर निर्भर है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, ‘हम इसका श्रेय भारतीयों को देते हैं जिन्होंने हमें गणना करना सिखाया, जिसके बिना कोई भी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज नहीं की जा सकती थी।’ भारत ने ही दशमलव पद्धति का आविष्कार किया। युकलिड से काफी पहले भारत में ‘ज्यामिति’ के नाम से ‘रेखागणित’ का प्रयोग किया जाता था। आर्यभट्ट ने किसी वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात को पाई के रूप में परिभाषित किया था और दशमलव के चार अंकों तक इसका शुद्ध मान बतलाया था। इसी प्रकार, 1,500 वर्ष पहले ‘सूर्य सिद्धांत’ में भास्कराचार्य ने सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी द्वारा लिए गए समय की 9 दशमलव स्थानों में गणना की। इसके अलावा, कॉपरनिकस से 1,000 वर्ष पहले आर्यभट्ट ने कहा था कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, जबकि ‘सूर्य सिद्धांत’ में भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के नियम को पहचाना था। ‘औषधि-विज्ञान’ के क्षेत्र में चरक ने ‘आयुर्वेद’ को समेकित किया था और 2,500 वर्ष पहले सुश्रुत ने ‘जटिल शल्य क्रियाएँ’ की थीं।”
हमें अपनी उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए परंतु इन पर आगे शोध न होने के कारण इनका प्रसार नहीं हो पाया और इन बातों से शेष जगत अनभिज्ञ रहा। अतः आत्मनिर्भर भारत का अर्थ इन्हीं उपलब्धियों को आगे बढ़ाते हुए, नए आविष्कार के साथ देश को श्रेष्ठता के शिखर पर पहुँचाना है, क्योंकि देश, बुद्धि बल और सामर्थ्य से लैस है।

अब्दुल कलाम जी ने कहा है – “सौभाग्य से ज्ञान युग के उद्भव के साथ भारत खुद को एक अत्यंत लाभकारी स्थिति में पाता है, क्योंकि यह शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और शासन में सामाजिक परिवर्तनों को प्रेरित करेगा । यह परिवर्तन बड़े पैमाने पर रोजगार और उच्च उत्पादकता, उच्च राष्ट्रीय विकास, कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण, समन्वित तथा पारदर्शी समाज और ग्रामीण समृद्धि को प्रोत्साहित करेगा। बौद्धिक युग के दौरान भारत का गौरव फिर लौटकर आएगा, क्योंकि भारत के पास सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी और बौद्धिक कार्यकर्ताओं की क्षमताएँ हैं। राष्ट्र-निर्माण के उपयुक्त लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिए हमें अपनी क्षमता का पूरा लाभ उठाना होगा।”
माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी द्वारा आत्मनिर्भर भारत की शुरुआत का उद्देश्य यही है कि देश का प्रत्येक व्यक्ति, महिला या पुरुष मुख्यतः युवा, अपने कौशल को पहचाने, अपने हुनर को ताकत बनाए। 17 फ़रवरी 2021 को अपने भाषण में उन्होंने युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा – “इस वर्ष हम अपनी आज़ादी के 75वीं वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। ये बहुत सही समय है नए लक्ष्य बनाने का, उन्हें प्राप्त करने के लिए पूरी ताकत लगा देने का। …….. जब भारत अपनी स्वतंत्रता के सौ वर्ष मनाएगा तब कितने नए वर्ल्ड क्लास प्रोडक्टस हमने दिए होंगे, कितने ग्लोबल लीडर्स हमने बनाए होंगे। ये सोचकर हमें अभी से काम करना होगा। आप लक्ष्य तय करिए, देश आपके साथ है।
मोदी जी का ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’, एक ऐसी परियोजना है जिसका उद्देश्य सिर्फ़ कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभावों से लड़ना नहीं, अपितु भविष्य के भारत का पुनर्निर्माण करना है। वर्तमान वैश्वीकरण के युग में ‘आत्मनिर्भरता’ का अर्थ आत्मकेंद्रिता से अलग है। इसका अर्थ स्वयं निर्भर होने के साथ दूसरे की उन्नति में अपना सहयोग देना है। आत्मनिर्भर भारत का निर्माण, ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की संकल्पना के साथ मात्र अपनी ही प्रगति नहीं अपितु दुनिया की प्रगति में भी योगदान देना है। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने 12 मई, 2020 के अपने भाषण में कहा, “आत्मनिर्भर भारत अलग-थलग नहीं, दुनिया का केंद्र भी होगा।
‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण की दिशा में प्रथम व दूसरे चरण के अंतर्गत सरकार ने 10 ऐसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया है, जिनमें घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा। सरकार ने इन क्षेत्रों के आयात में कटौती का भी निर्णय किया है, ये हैं – फर्नीचर, फुटवियर, एयर कंडीशनर, पूंजीगत सामान, मशीनरी, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, रत्न एवं आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल आदि।
आत्मनिर्भर भारत 3.0 के अंतर्गत बुनियादी ढांचे को मजबूत करना, किसानों की आय को दोगुना करना, सुशासन, युवाओं के लिए अवसर, महिला सशक्तिकरण और अन्य विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। अतः 2021-22 का आम बजट भी, स्वास्थ्य, भौतिक और वित्तीय पूंजी, समावेशी विकास, मानव पूंजी को फिर से विकसित करना, नवाचार, अनुसंधान तथा शासन में अधिकतमकरण आदि पर आधारित है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान का उद्देश्य, कोरोनाकाल में देश के नागरिकों की खराब आर्थिक स्थिति को मात्र सुधारने का प्रयास नहीं अपितु देश को पुनः शक्ति-संपन्न व सोने की चिड़िया बनाना है। और यह तभी संभव है जब हमारे देश के किसान, गरीब नागरिक, काश्तगार, प्रवासी मजदूर, कुटीर उद्योग में काम करने वाले नागरिक, लघु उद्योग, मध्यमवर्गीय उद्योग, मछुआरे, पशुपालक, संगठित क्षेत्र व् असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्ति, सभी अपने क्षेत्रों में सफलता के सबसे ऊँचे पायदान पर होंगे। सरकार ने उपर्युक्त क्षेत्रों के विकास हेतु अपने कदम बढ़ाए हैं। इन विभिन्न क्षेत्रों के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की गई है, जिन्हें आधिकारिक वेबसाइट http://pmmodiyojana.in/ पर देखा जा सकता है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान, राहत पैकेज के अंतर्गत निम्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों को रखा गया है –
• मेक इन इंडिया ( make in india mission )
• निवेश को प्रेरित करना (Provide Good Investment Opportunities)
• सरल और स्पष्ट नियम कानून (Rational Tax System)
• नए व्यवसाय को प्रेरित करना (To Motivate New Business)
• उत्तम आधारिक संरचना (Reformation Of Infrastructure)
• समर्थ और संकल्पित मानवाधिकार ( Capable Human Resources)
• बेहतर वित्तीय सेवा (A Good Financial System)
• कृषि प्रणाली (Reformation Of Agricultural Supply Chain & System)
राहत पैकेज द्वारा आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को पूरा करने में प्रोत्साहन मिलेगा।
एक महान लक्ष्य अनेक प्रकार की चुनौतियों से भरा होता है। देश की रक्षा हेतु जिस प्रकार आतंकवाद जैसी अमानवीयता पर अंकुश लगाया गया है, उसी प्रकार आत्मनिर्भर भारत हेतु भारत को अपनी आंतरिक चुनौतियाँ जैसे क्षेत्रवाद, भाषावाद नक्सलवाद सांप्रदायिकता, जातिवाद आदि प्रभावी रूप से निपटना आवश्यक है और बाह्य चुनौतियाँ जैसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा, जलवायु परिवर्तन, शक्ति-संतुलन और वैश्विक महामारी आदि में भी अपने को सशक्त बनाना आवश्यक है। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था कि “भारत को बाहर रखकर विश्व समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता”। टोनी ब्लेयर ने भी अपनी पुस्तक ‘ए जर्नी’ में कहा है कि “भारत के पास इतनी सामर्थ्य है कि वह महाशक्ति बन जाए”। विश्व के महाशक्तिशाली देशों ने भी भारत को शक्ति पूर्ण और सामर्थ्यवान स्वीकार कर लिया है, आवश्यकता है तो इस शक्ति और सामर्थ्य को प्रत्यक्षरूपेण करने का, जो उत्साह के बिना असंभव है। लगभग 2,500 वर्ष पहले तमिल के महान कवि, संत तिरुवल्लुवर जी ने लिखा है –

இடும்பைக்கு இடும்பை படுப்பர் இடும்பைக்கு

இடும்பை படாஅ தவர்.
(इडुंम्बैक्कु इडुंम्बै पडुप्पर इडुंम्बैक्कु, इडुंम्बै पडाs दवर।)

इसका अर्थ है कि सफल व्यक्ति कभी समस्याओं से नहीं भागते। वे स्थिति पर हावी हो जाते हैं और समस्याओं को हराते हैं। उनका कहना है – “अपार उत्साह ही मानव की शक्ति है, जिनमें उत्साह नहीं वे तो निरे पशु हैं।
बाल्मीकि रामायण में तो कहा गया है उत्साह से बढ़कर कोई बल नहीं है। उत्साही पुरुष के लिए जगत में कोई वस्तु दुर्लभ नहीं होती है। चीन के विचारक कन्फ्यूशियस ने लिखा है “जो लोग योजनाबद्ध तरीके से काम नहीं करते है, वे अपने को मुसीबत में डाल देते हैं। योजनाबद्ध रूप में कार्य करने से कार्य भी संपन्न होता रहता है और कर्ता के आत्मविश्वास में वृद्धि भी होती रहती है। योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने पर परिस्थितियां भी अनुकूल बनती चली जाती है।

कोरोना जैसी महामारी ने आज सभी को भयभीत कर दिया है। सम्पूर्ण विश्व उसके आघात से कराह रहा है, परंतु मनुष्य, ईश्वर द्वारा बनाई वो श्रेष्ठ, शक्तिशाली रचना है कि दर्द में भी मुस्कराने की क्षमता रखती है, असंभव में भी संभावनाओं को खोज लेती है। विपरीत परिस्थियों में भी व्यक्ति ने आशा नहीं छोड़ी अपितु आत्मनिर्भर अभियान का हिस्सा बनकर अपने साथ-साथ अन्य जरूरतमंदों के लिए भी इस आपदा की घड़ी में नए मार्गों को खोल रहा है।

स्कूली बच्चों तथा वेबसाइट के माध्यम से युवाओं द्वारा संपर्क में आने पर अब्दुल कलाम जी ने जो सुझाव प्राप्त किए, उसे उन्होंने अपने शब्दों में उल्लेख किया है – “मेघालय के एक छात्र ने कहा, ‘मुझे शिक्षण कार्य पसंद है, क्योंकि इससे बच्चों को हमारे देश के अच्छे व श्रेष्ठ नागरिकों के रूप में आकार दिया जा सकता है। इसलिए मैं एक शिक्षक या अपने देश की रक्षा के लिए सैनिक बनना चाहता हूं।’ पांडिचेरी के एक अन्य बालिका ने कहा, ‘एक धागे में कई फूल पिरोकर ही माला बनाई जा सकती है। इसलिए मैं इस विकसित भारत के स्वप्न को साकार करने के लिए अपने देशवासियों को देश से प्यार करने तथा मन की एकता के लिए कार्य करने को प्रेरित करूंगी।’ गोवा के एक बालक ने कहा, ‘मैं एक इलेक्ट्रॉन बन जाऊंगा और और ऑर्बिट में स्थित इलेक्ट्रॉन की तरह अपने देश के लिए अनवरत कार्य करता रहूंगा।’ अटलांटा में रहने वाले भारतीय मूल के एक छात्र ने जवाब दिया, ‘जब भारत आत्मनिर्भर बन जाएगा और आवश्यकता पड़ने पर किसी भी देश के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की क्षमता रखेगा, तभी मैं भारत का गीत गाऊंगा और मैं इसके लिए प्रयास करूंगा।’ उस छात्र का अर्थ था कि भारत को आर्थिक संपन्नता के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा तथा राजनीतिक इच्छा-शक्ति के साथ एक विकसित देश बनना चाहिए। युवा मस्तिकों के कितने उच्च विचार हैं। यह केवल कुछ उदाहरण हैं। युवा तेजस्वी मनों की देश को महान बनाने की अभिलाषाएँ स्पष्ट हैं। यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि भारत में ऐसे 70 करोड़ युवा मस्तिष्क हैं। यह एक विशाल शक्ति है जिसे रचनात्मक रूप से भारत को एक विकसित देश बनाने के एकमात्र लक्ष्य की ओर उन्मुख किए जाने की आवश्यकता है। युवाओं की तरह भारत का प्रत्येक नागरिक एक खुशहाल, संपन्न, शांतिपूर्ण तथा सुरक्षित भारत में रहना चाहेगा।”
आज इन्हीं युवाओं के हाथ में देश को सौंपकर आदरणीय प्रधानमंत्री जी एक नए भारत का निर्माण करने और अनेक महान व्यक्तित्व जिन्होंने डॉ. कलाम की तरह भारत देश के लिए स्वप्न देखे, उन्हें पूरा करने के लिए यथासंभव प्रयास कर रहे हैं।
प्रलय और उसके बाद नव-निर्माण, एक ऐसा यथार्थ सच है, जिसे हमने सदा स्वीकारा है परंतु कभी रुके नहीं, हार नहीं मानी, बढ़ते ही गए। सन् 1935 में जयशंकर प्रसाद जी द्वारा रचित महाकाव्य, विश्व की महान रचनाओं में एक ‘कामायनी’, प्रलय और उसके बाद मानव-सृष्टि के विकास की कथा है। प्रसाद जी श्रद्धा सर्ग में बताते हैं- ‘प्रकृति के यौवन का शृंगार, कभी न करेंगे बासी फूल’, आशय स्पष्ट है कि नई सोच, नई पीढ़ी ही एक नये बदलाव को जन्म दे सकती है। यह बदलाव ‘विकासशील’ से ‘विकसित’ का होगा। आत्ममंथन कराती ‘कामायनी’ द्वारा प्रसाद जी श्रद्धा का दीपक जलाते हुए आशा दिलाते हैं – ‘दुःख की पिछली रजनी बीच, विकसता सुख का नवल प्रभात।
‘आत्मनिर्भर भारत’, प्रत्येक परिस्थिति को सकरात्मकता प्रदान करते हुए, विभिन्न क्षेत्रों में न केवल प्रोफेशनल बनेगा अपितु मानव मूल्यों का संरक्षण करते हुए समाज कल्याण की भावना को बनाए रखेगा। ‘विकसित देश’ बनाने हेतु युवा हर चुनौती को स्वीकार करने की क्षमता रखता है, अतः वह रचनात्मक उद्यमी बनकर दूसरों को भी रोज़गार उपलब्ध कराएगा। इस प्रकार, भारत देश का प्रत्येक व्यक्ति सुखी-संपन्न होने के साथ विकसित देश के स्वप्न को साकार करने में अपनी सहभागिता निभाएगा।

संदर्भ –

  1. मेरे सपनों का भारत, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, (अनूदित) ए. शिवताणु पिल्लै, पृ.- 7, 23,145
  2. गोसम्पदा (मासिक), अप्रैल, 2021 पृ. – 9
  3. आधिकारिक वेबसाइट http://pmmodiyojana.in/
  4. प्रतियोगिता दर्पण, अक्तूबर, 2017, पृ. – 189
  5. तिरुक्कुरल, तिरुवल्लुवर, कुरल 623
  6. तिरुक्कुरल, (अनूदित) पं. गोविंदराय जैन शास्त्री, पृ. – 60
  7. कामायनी, जयशंकर प्रसाद, पृ. – 36

आत्मनिर्भर भारत : संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ ISBN 978-93-90688-36-4, 2022 पुस्तक में प्रकाशित।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *