लेख

प्रेरणा का स्वरूप : प्रतिकूल परिस्थितियाँ

प्रतिकूल परिस्थितियाँ हमारे जीवन में सदैव एक बदलाव लाती हैं और यह बदलाव हमें समृद्धि की ओर ले जाता है। ये, हमें डराती अवश्य हैं परंतु मानसिक स्तर पर बहुत मजबूत बनाती हैं। ये, हमारे लिए प्रेरणा बनकर आती हैं क्योंकि इन क्षणों में हमारी धैर्य-शक्ति पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ जाती है और हमारी सोचने-समझने की क्षमता भी पहले से बेहतर हो जाती है।
प्रतिकूल परिस्थिति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह सबसे पहले हमारे अहं को तोड़ती है, जो मनुष्य का सबसे बडा शत्रु होता है, क्योंकि व्यक्ति के पतन का कारण ही अहं है। अतः प्रतिकूल परिस्थिति हमारे लिए एक मित्र का कार्य करती है, जिसकी संगति में आकर हम बहुत कुछ सीखते हैं। यदि यहाँ इस तथ्य को दिखाना चाहें तो ‘कोरोना’ जैसी महामारी से बढ़कर कोई दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता। इस परिस्थिति ने न मात्र हमें अपितु संपूर्ण विश्व को झकझोर दिया। जो स्वप्न में भी नहीं सोचा जा सकता था, वह सामने प्रत्यक्ष खड़ा हो गया। प्रकृति से विपरीत जाना कितना घातक है, इसका परिणाम समक्ष था। हमने अपनी जीवन-शैली को किस प्रकार पूर्णरूपेण विपरीत बना लिया था, इसका एहसास तब हुआ जब हमने पहले की भाँति स्वच्छता, शुद्ध भोजन, फलों का सेवन, पूरी नींद, समय पर सोना-जागना, व्यायाम करना, प्रेम से रहना आदि प्रकृति के अनुरूप जीवन को पुनः जीना प्रारंभ कर दिया।
‘परिवार’, उस परिवार में रहने वाले सदस्यों से बनता है; इस भागम-दौड़ की दुनिया में परिवार खो गया था; इस परिस्थिति ने फिर से परिवार बनाया; यहाँ तक कि टूटे संबंध और छूटे रिश्तेदारों से पुनः मिलाकर एक नया रिश्ता जोड़ उनके महत्व को बताया; उनके भी स्वास्थ्य का हाल-चाल लेना हमारे लिए महत्वपूर्ण बन गया।
इन भयावह परिस्थितियों ने व्यक्ति को स्वयं से जोड़ दिया, जीवन को उसकी प्राथमिकता की ओर मोड़ दिया और सबसे बड़ी बात यह थी कि इच्छाएँ जो कभी कम नहीं हो पा रही थीं, उन पर भी विजय प्राप्त कर, कम से कम में गुजारा करना सिखा दिया। परिवार के साथ खुश बच्चे भी अपने माता-पिता के पढ़ाई के दबाव; स्कूल के बस्ते के बोझ और सुबह से रात तक की अनचाही जिम्मेदारी से मुक्त हो गए।
इस महामारी ने प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार से अवश्य ही हानि पहुँचाई; कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा; बड़े-बड़े दु:ख सामने खड़े हो रुला भी रहे थे और डरा भी; परंतु ये क्षण व्यक्ति-समाज के लिए बहुत बड़ा सबक बनकर आए; एक प्रेरणा के रूप में व्यक्ति को जीवंत और उसकी अंतरात्मा पर पड़ी धूल को साफ करने आए। पशु-पक्षी चहकने लगे; पेड़-पौधों की पत्तियाँ चमकने लगीं; वायु सुगंधित और स्वच्छ बहने लगी; पशु भी बिना भय के स्वतंत्र विचरण करने लगे।
प्रकृति ने ‘कोविड-19’ के द्वारा मानव-जाति को बहुत बड़ा संदेश दिया, साथ ही सीख भी। अतः प्रतिकूल परिस्थितियाँ, प्रेरणा बनकर आती हैं, जो व्यक्ति को अनुभवी व पहले से बेहतर बनाती हैं।
ठीक वैसे ही विपरीत परिस्थितियों में व्यक्ति अपने सामर्थ्य एवं स्वयं में छिपी शक्ति को जान पाता है, जैसे अंधकार से ही प्रकाश का अस्तित्व होता है –
… मैं तो वह अँधेरा हूँ
जो अँधेरे में ही सबको
रोशन करता हूँ
मेरे बिना उसका वजूद न होगा
नकारते हो मुझे, दुत्कारते हो मुझे
अरे! मैं न हुआ तो
रोशन यह जहाँ न होगा। (स्वरचित काव्य-संग्रह ‘स्वयं में ब्रह्मांड’ के ‘अँधेरा’ कविता से)

वर्ष 2022, ‘प्रेरणा श्री’ से सम्‍मानित।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *