वैतरणी
“अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।।” — ब्रह्मवैवर्तपुराण १/४४/७४
अर्थात् व्यक्ति को अपने द्वारा किए गए शुभ-अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। न मात्र मानव शरीर में अपितु मृत्यु के पश्चात् पिंड रूप में शरीर धारण करने वाली आत्मा को अपने सुकर्मानुसार स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है, वहीं पापी को यममार्ग की यातना झेलते हुए नरक भोगना पड़ता है।
“पापीना मैहिक॔ दु:खं यथा भवती तच्छृणु।
ततस्ते मरणं प्राप्य यथा गच्छन्ति यात्नाम्।।” गरुड़ पुराण, १।१८।।
एक बार गरुड़ को नर्क और यममार्ग जानने की इच्छा जागृत हुई, तब भगवान विष्णु गरुड़ को यममार्ग और नरकलोक के बारे में बताते हैं, जिसका संपूर्ण विवरण ‘गरुड़ पुराण’ में मिलता है। उल्लेखनीय है कि मृत्यु के पश्चात् तेरहवें दिन यमदूत पिंड को जब बंदी बनाकर यमलोक के लिए ले जाते हैं, तब उस पिंड को मार्ग में मिलने वाली ‘वैतरणी’ नदी को छोड़कर 86 हजार योजन की दूरी तय करनी होती है।
“षडशीतिसहस्त्राणि योजनानां प्रमाणत:।
यममार्गस्य विस्तारो विना वैतरणी खग।।” १।५६।।
मार्ग के बीचो-बीच अत्यंत उग्र रूप में वैतरणी नदी बहती है। वह दिखने में ही दु:खदाई नहीं अपितु उसकी वार्ता भी भयभीत करती है। उसकी चौड़ाई सौ योजन है और उसमें पीव-मवाद बहते रहते हैं। उसके तट हड्डियों से भरे रहते हैं। माँस और रक्त के कीचड़ वाली नदी अपार कष्टों के बाद पार की जाती है।
“मार्गमध्ये वहत्युग्रा घोरा वैतरणी नदी।
सा दृष्टा दु:खदा किं वा यस्या वार्ता भयावहा।। २।१५।।
शतयोजनविस्तीर्णा पूयशोणितवाहिनी।
अस्थिवृन्दतटा दुर्गा मांसशोणितकर्दमा।।” २।१६।।
जब प्रेत वैतरणी के निकट पहुँचता है तो कैवर्त (धीवर) पूछता है कि हम तुम्हारे लिए महावैतरणी नदी को पार करने के लिए नाव लेकर आए हैं, यदि तुमने पुण्य किए हैं, दान किए हैं, तभी इस नाव में बैठ सकते हो! यह नदी वितरण द्वारा ही पार की जा सकती है, इसीलिए इसे वैतरणी कहा गया है –
“वयं ते तर्तुकामाय महावैतरणी नदीम् ।
नावमादाय सम्प्राप्ता यदि ते पुण्यमीदृशम् ॥ २।६५ ॥
दानं वितरणं प्रोक्तं मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः ।
इयं सा तीर्यते यस्मात् तस्माद्वैतरणी स्मृता ॥” २।६६ ॥
‘यदि तुमने गोदान किया है तभी नौका तुम्हारे पास आएगी अन्यथा नहीं’-
“यदि त्वया प्रदत्ता गौस्तदा नौरुपसर्पति।”२।६७।
‘उस प्रेत को देखकर वह नदी क्रोधित होने लगती है। उसके इस रूप को देखकर प्रेत विलाप करने लगता है कि उसने अपने जीवन में कभी दान नहीं किया। ऐसे पाप को धारण करने वाला उसी (वैतरणी) में डूबता है। तब यमदूत उसके मुख में मछली की भाँति काँटा लगाकर वंशी से उसे खींचते हुए पार ले जाते हैं।’
“दृष्ट्वा क्वथते सा तु तां दृष्ट्वा सोऽतिक्रन्दते।
अदत्तदानः पापात्मा तस्यामेव निमज्जति॥ २। ६८ ॥
तन्मुखे कण्टकं दत्त्वा दूतैराकाशसंस्थितैः बडिशेन यथा मत्स्यस्तथा पारं प्रणीयते ॥”२। ६९ ॥
इस प्रकार अधर्म, असत्य एवं पाप कर्म धारण करने वाले मनुष्य यम-यातना प्राप्त करते हैं-
“पापशीला नरा यानि दु:खेन यमयातनाम्।”१।१७।
‘पद्मपुराण’ में भी वैतरणी नदी का उल्लेख मिलता है, जहाँ इसे पवित्र नदी माना गया है।
बौद्ध ग्रंथ ‘संयुक्तनिकाय’ में इसे “यम की नदी” कहा गया है-
‘यमस्त वैतरिणम्।’ संयुक्तनिकाय १।२१
‘वामनपुराण’ में इसे कुरूक्षेत्र की सप्तनदियों में एक माना गया है-
“सरस्वती नदी पुण्या तथा वैतरणी नदी,
आपगा च महापुण्या गंगा-मंदाकिनी नदी।
मधुस्रवा अम्लुनदी कौशिकी पापनाशिनी,
दृषद्वती महापुण्या तथा हिरण्यवती नदी।” वामनपुराण३९।६-८
महाभारत, भीष्मपर्व में अन्य नदियों के साथ वैतरणी का भी उल्लेख है जो वर्तमान में उड़ीसा राज्य में बहती है-
“चित्रोत्पलां चित्ररथां मंजुलां वाहिनी तथा मंदाकिनी वैतरणी कोषां चापि महानदीम्।” भीष्मपर्व ६।९।३४
वैतरणी ओडिशा में बहने के साथ-साथ ही महाराष्ट्र में भी प्रवाहित होती है, जो नासिक के पास पश्चिमी घाट से निकलती है और अरब सागर में गिरती है। पृथ्वी पर प्रवाहित हो रही प्रत्यक्ष रूप में ये वैतरणी नदियाँ परलोक की वैतरणी के समान तो स्वरूप धारण नहीं करती परंतु प्रकृति की रक्षा व मानव-जाति का संरक्षण अवश्य करती आ रही हैं।