‘नवरात्रि’ : शक्ति को जागृत करने का स्रोत
श्रीराम-रावण युद्ध में जब श्रीराम की सेना पराजय होने लगी तब श्रीराम ने शक्ति को प्रसन्न करने हेतु नौ दिन, देवी की पूजा करने का संकल्प किया और अंतिम दिन अर्थात् नौवे दिन शक्ति प्रकट हो, राम में विलीन हो गई। यह प्रसंग शक्ति की महिमा का बखान करने के साथ-साथ इन नौ दिनों की विशेषता और उसकी महत्ता पर भी ध्यान आकर्षित करता है।
देवी जिसके अनेक रूप व अनेक नाम हैं, परंतु क्यों नौ देवी और नौ दिन का ही महत्व और पूजा का विधान है? इसके पीछे अनेक तात्पर्य छुपे हुए हैं, जिनमें मुख्य है कि ये नौ दिन मनुष्य को उसकी शक्ति का परिचय करवाते हैं।
मानव में अपार शक्ति है। व्यक्ति अपनी संपूर्ण शक्ति का अल्पांश मात्र ही प्रयोग करता है, शेष शक्ति इस शरीर में व्यर्थ हो जाती है। मानव शरीर की संपूर्ण शक्ति ‘कुण्डलिनी’ रूप में सोई हुई होती है। जब तक यह सोई हुई होती है, व्यक्ति दिव्यता और सत्यता से दूर ही रहता है क्योंकि इसे महसूस करने व उसमें जीने के लिए इन चक्षुओं की नहीं अपितु आंतरिक दृष्टि की आवश्यकता होती है, जो इस शक्ति के जागृत के बिना मिलना असंभव है।
संत या सद्गुरु की दीक्षा या करोड़ों बार ‘शक्तिमंत्र’ जप करने से यह कुण्डलिनी जागृत होती है। यह शक्ति जितनी जागृत होती है, व्यक्ति उतना ही अपने सत्य स्वरूप से परिचित होता जाता है।
“कुण्डलिन्यां समुद्भूता गायत्री प्राणधारणी।
प्राणविद्या महाविद्या यस्तां वेत्ति स वेदवित्।।”
अर्थात् , कुण्डलिनी से उद्भूत प्राण-धारणी (अजपा) गायत्री, प्राणविद्या व महाविद्या हैं। इन्हें जो जान लेता है, वह सब कुछ जान जाता है।
मानव शरीर में कई शक्ति स्रोत केंद्र है, परंतु उनका मुख्य केंद्र ‘मूलाधार’ (मेरुदंड का मूल) है। इसे मूलाधार चक्र भी कहा जाता है, जहाँ संपूर्ण शक्ति सर्पिनी की भाँति कुंडलिनी रूप में अवस्थित रहती है। यह ब्रह्मांड में व्याप्त महाकुंडलिनी रूपी शक्ति का व्यष्टि रूप है। जब यह कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है तो ‘सुषुम्ना नाड़ी’ (मानव शरीर में 72000 नाडिय़ों में ‘शक्ति’ प्रवाह की एकमात्र नाड़ी) द्वारा ‘मूलाधार’, उससे कुछ ऊपर ‘स्वाधिष्ठान’, नाभि के पास ‘मणिपुर’ , ‘अनाहत’ (हृदय), कण्ठ के पास ‘विशुद्धि’, दोनों भौं के बीच में ‘आग्नेय’ एवं दो गुप्त चक्रों से होती हुई अंतिम द्वार (शिखा) ‘सहस्त्रार’ जिसे ब्रह्मरंध्र भी कहा जाता है, तक पहुँचती है, जहाँ परमानंद एवं परमतत्व का अनुभव प्राप्त होता है।
प्रत्येक चक्र का अपना गुण और उसकी विशेषता है, इस प्रकार नौ दिन तक साधक चक्रानुसार साधना करता हुआ नौवें दिन ‘सिद्धिदात्री’ की अनुकंपा का पात्र बन जाता है। व्यक्ति शक्ति को जिस रूप में देखता है, वह उसकी कृपा का पात्र हो जाता है। अतः साधना एवं अपनी शक्ति को जागृत कर, परमानंद की प्राप्ति का स्रोत है, ‘नवरात्रि’।
3 अक्टूबर 2022, राजस्थान पत्रिका, चेन्नई में प्रकाशित।
One Comment
Shankar Parashar
अति सुंदर लघु पौराणिक कथा, साथ साथ अच्छी जानकारी