• मानक हिंदी

    अनुस्वार (ं) और चंद्र बिंदु (ँ) संबंधी अशुद्धियाँ

    अनुस्वार के स्थान पर चंद्रबिंदु लगाइए* अशुद्ध रूपअंगीठीअंगूठाअंग्रेजीआंसूकंटीलाकांटागांधीजाऊंगाजूंडांटढंगतांगातांबादांवपांचफांसीबांदामांरोटियांसांपहंसीहां-हूंहोउंगी शुद्ध रूप*अँगीठीअँगूठाअँग्रेजीआँसूकँटीलाकाँटा (कंटक सही है)गाँधी (गंदी सही है)जाऊँगाजूँडाँटढँगताँगाताँबादाँवपाँचफाँसीबाँदामाँरोटियाँसाँपहँसीहाँ-हूँहोउँगी * अनुस्वार के स्थान पर चंद्रबिंदु का प्रयोग करना पूर्णत: अशुद्ध है। चंद्रबिंदु (ँ) के स्थान पर अनुस्वार (ं) लगाइए अशुद्ध रूपअँकअँकुशअँजनएवँक्रमाँकदिनाँकपँचबाराबँकीरँगविशेषाँकसँस्कृतसँयोगस्वयँ शुद्ध रूपअंकअंकुशअंजनएवंक्रमांकदिनांकपंच ( पाँच सही है)बाराबंकीरंगविशेषांकसंस्कृतसंयोगस्वयं अनुस्वार न लगाइए अशुद्ध रूपजाएंगींओंठगेंहूँचाहिएंदोस्तों शुद्ध रूपजाएंगी*ओठगेहूँ चाहिए**दोस्तो*** (संबोधन में, जैसे-प्रिय दोस्तो!) अशुद्ध रूपनींबूनोंकपूछतांछबीचोंबीचभींगनामहीनेंमानोंहोंठो शुद्ध रूपनीबूनोकपूछताछबीचोबीचभीगनामहीनेमानोहोठों * भविष्यत् काल में बहुवचन में- गें, गीं नहीं होता। इनसे पूर्व का स्वर प्रभावित होता है, जैसे- जाएगी > जाएंगी > जाएंगे आदि।भूतकाल में स्त्रीलिंग में अनुस्वार लगता है, जैसे-आई > आईं ; लेकिन पुल्लिंग > बहुवचन में अनुस्वार नहीं लगता, जैसे आया > आए आदि । ** ‘मुझे…

  • लेख

    ‘गोशाला’ से पवित्र स्थल, दुनिया में कहीं भी नहीं…

    महर्षि वशिष्ठ जी ने कहा है – “गाव: स्वस्त्ययनं महत्” अर्थात् ‘गो मंगल का परम् निधान है।’ जहाँ गोमाता का पालन-पोषण भली-भाँति नहीं होता, वहाँ अमंगल दशा देखने को मिलती है और जहाँ गोमाता की पूजा होती है, वहाँ संपन्नता व आनंद की वर्षा होती है। यही कारण था कि पूर्वकाल में राजा गोधन को ही सर्वश्रेष्ठ मानते थे; गोपूजा, गोदान की प्रथा प्रचलित थी। समय के साथ भारतीय संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ आचरण ‘गोसेवा’ लुप्त होती गई और जिस देश में दूध की नदियाँ बहती थीं, वहाँ गरीबी बढ़ती गई। भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आचार्य विनोबा भावे जी ने कहा है – “हिंदुस्तानी सभ्यता का नाम ही ‘गोसेवा’ है।”महानगर…

  • कविता

    पड़ाव

    एक बार कहा था मैंनेउस सितारे से एक दिन चमकूंगी तेरी तरहपर इतनी दूर नहीं जहाँतेरे टूटने की प्रतीक्षा मेंनज़रें गड़ाए ज़िंदगी बिता देते हैंतुझसे उम्मीद रखने वाले। ठहर जाऊँगी मैं उस पड़ाव पर हीजहाँ से देख सकूंगी उन चेहरों कोजो आस लगाए बैठे हैं औरटूट जाया करूँगी बार-बारउनके चेहरे पर मुस्कराहट लाने के लिए।

  • संस्मरण

    सब कुछ मिल गया

    शाम को जॉब से लौटते समय भाई ने फोन किया और कहा कि दीदी थोड़ा तैयार रहना, मेहमान आ रहे हैं। मैंने कई बार पूछा कि कौन आ रहे हैं? भाई बोला कि बहुत स्पेशल हैं। मैं बहुत उत्सुक थी कि कौन मेहमान आ रहे हैं, कोई उसके सीनियर ऑफिसर आ रहे हैं या कोई और….? इंतजार करते-करते काफी समय बीत गया। फिर फोन आया…. भाई – दीदी आप फर्स्ट फ्लोर से नीचे सड़क पर आ जाइए। मैंने कहा – इतने बड़े मेहमान हैं कि उनका स्वागत सड़क पर जाकर ही करना पड़ेगा।मैं और मेरे पति दोनों ही नीचे पहुँचे तो देखा कि वह बाइक पर अपने दोस्त के साथ…

  • मानक हिंदी

    शुद्ध हिंदी लेखन

    हिंदी का प्रयोग-क्षेत्र विस्तृत है।  हिंदी की 18 बोलियाँ व उनकी उपबोलियाँ और उनके भी स्थानीय रूप होने के कारण, भाषा में अनेक भिन्नताएँ दिखाई देती हैं, जिससे उसके लेखन-शैली में विविधता आ जाती है। इस प्रकार, किसी वाक्य रचना या शब्दों का शुद्ध-अशुद्ध कहना कठिन हो जाता है, शब्दों के उच्चारण एवं लेखन में प्राय: एकरूपता का अभाव भी दिखाई देता है। अतः भाषा का मानक रूप, उसे पढ़ने, लिखने व समझने में एकरूपता के साथ सहजता प्रदान करता है एवं संप्रेषण को प्रभावी बनाता है। यहाँ, भाषा के शुद्ध व मानक रूप द्वारा हिंदी-लेखन में विभिन्न प्रकार की अशुद्धियों से परिचित कराया गया है। वर्तनी-संबंधी अशुद्धियाँ ‘अ’ के…

  • लेख

    युगदृष्टा स्वामी विवेकानंद

    “जिस चरित्र में ज्ञान, भक्ति और योग – इन तीनों का सुंदर सम्मिश्रण है, वही सर्वोत्तम कोटि का है। एक पक्षी के उड़ने के लिए तीन अंगों की आवश्यकता होती है – दो पंख और पतवारस्वरूप एक पूँछ। ज्ञान एवं भक्ति मानो तो पंख है और योग पूँछ, जो सामंजस्य बनाए रखता है।” ऐसे दार्शनिक, विचारक, लेखक, वक्ता, देशभक्त, भक्त, मानव व प्रकृति प्रेमी युगदृष्टा स्वामी विवेकानंद, जिन्होंने मात्र 25 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिया। वे सत्य की खोज में तब तक प्रयासरत रहे, जब तक उसे पा नहीं लिया।मात्र 30 वर्ष की आयु में शिकागो सम्मेलन में भारत देश की संस्कृति, सभ्यता अध्यात्म, धर्म को सम्मान दिलाया,…

  • लेख

    संत कवयित्री सहजोबाई

    हिंदी साहित्य के भक्ति काल में यदि किसी संत कवयित्री की बात की जाए तो तुरंत ही मीराबाई का नाम जिह्वा पर होता है, परंतु यह भी विचारणीय है कि उनके अलावा किसी अन्य महिला संत का आविर्भाव नहीं हुआ। भक्त मीराबाई के समान चारों और भक्ति की सुगंध फैलाने वाली 18वीं सदी की सहजोबाई भी अविस्मरणीय स्थान रखती हैं।सहजोबाई का जन्म 25 जुलाई, सन् 1725 दिल्ली माना जाता है, वहीं, कहीं-कहीं 15 जुलाई, सन् 1724 का भी उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि राजस्थान में उनका जन्म हुआ और बाद में, वे सपरिवार दिल्ली आ गईं। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। शादी के समय एक ऐसी घटना…

  • कविता

    रिकॉर्डिंग

    एक जमाना थाजब कह देते थे अपनीसुन लेते थे उनकीकर लेते थे दिल हल्काकुछ कहकर अपने मन की। अब सब यहाँ बदल गयामन की कहने से अंतर्मन सहम गयाविश्वास तमाशा बन गयारिकॉर्डिंग से वह छल गयासंबंध व्हाट्सएप में ढल गया।

  • विविध

    मीराबाई – अद्भुत कला की प्रतिमान

    मीराबाई, १६वीं शताब्दी की महान संत और कवयित्री हैं। वह कृष्ण की अनन्य भक्त एवं उत्तर भारत की हिंदू परंपरा से संबंध रखती हैं, लेकिन उनकी कृष्ण भक्ति न केवल सम्पूर्ण भारत में अपितु दूसरे देश में भी जानी जाती है। मीराबाई का जन्म भारत के राजस्थान के पाली के कुंडकी जिले के एक राजपूत शाही परिवार में हुआ था। मीराबाई न केवल कृष्ण की भक्त हैं अपितु उनके द्वारा रचित काव्य उन्हें श्रेष्ठ कवयित्री के रूप में भी दर्शाता है। उनका व्यक्तित्व इस प्रकार निखर कर बाहर आया कि सभी के लिए प्रेरणादायी बन गया। मीराबाई और उनके जीवन की कहानियाँ विभिन्न प्रकार की कलाओं जैसे पेंटिंग, मूर्तिकला आदि…

  • लेख

    गुरु गोरखनाथ और हिंदी

    नाथ पंथ के प्रवर्तक एवं हठयोग के उपदेशक, महायोगी, गुरु गोरखनाथ का अवतरण एक ऐसे काल में हुआ जब सामाजिक व्यवस्था डगमगाने लगी थी, यहाँ तक कि भारतीय संस्कृति के विनाशक लक्षण प्रत्यक्ष होने लगे थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें अपने युग के सबसे महान धर्म नेता का स्थान दिया है, वे कहते हैं – “शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित महापुरुष भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ।” विभिन्न मतानुसार गुरु गोरखनाथ का आविर्भाव सातवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक माना गया है, वहीं डॉ पीतांबर बड़थ्वाल ने संवत १०५० के आसपास माना है। उनका कहना है – “निर्गुण शाखा वास्तव में योग का ही परिवर्तित रूप…