• कविता

    प्रेममयी श्रृंगार करो

    दिव्य ज्योति भर, नवभारत माँ का प्रेममयी श्रृंगार करो। भेद-भाव सब दूर करो, एकत्व शक्ति संचार करो।। बदलेगा मौसम हृदय का, प्रेममयी बरसातें होंगी, महकेगी बगिया फूलों की, भोंरो की गुंजारे होंगी। बीत चुके सत्तर बरस, अब तो आज़ादी का भान करो द्वेष-भाव सब दूर करो, एकत्व शक्ति संचार करो।। स्वर्ग भूमि बन जाएगी जब, जाति-पाँति सब मिट जाएगा, होगा अनोखा देश जहाँ का, जब ‘मैं’ शब्द मिट जाएगा। स्वयं शक्ति उद्गार करो, संत वाणी का अनुसार करो हीन-भाव सब दूर करो, एकत्व शक्ति संचार करो॥ रूप-रंग-भाषा अनेक, हैं भारत माँ के लाल सभी, आन पड़ी जब लालों ने, दे दी अपनी जान वहीं। उनको शत्-शत् प्रणाम करो, तुम मातृभक्ति…

  • लेख

    नारी- पुरुष समान हैं और भिन्न भी

    नारी एक ऐसा रहस्य है जिसे सभी ने अपने- अपने दृष्टिकोण से जानने का प्रयास किया और उसे परिभाषित किया। यदि हम आज की बात करें तो हर कोई नारी उत्थान और उसकी समस्या पर चर्चा कर रहा है। कभी नारी की पारिवारिक स्थिति को बदलने और उसे परिवार, समाज मे सम्मान, उचित स्थान दिलाने तो कभी पुरुषों से तुलना करते हुए समानता के अधिकार की बात की जा रही है। नारी प्रारंभ से ही पुरुष के समान है। उसकी सहभागिता प्रत्येक स्थान पर उतनी ही है जितनी पुरुष की। यहां तक कि वेद-पुराणों और शास्त्रों में उसका स्थान सर्वोपरि बताया गया है। नारी को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ स्थान…

  • कविता

    प्रेमचंद – साहित्य का सूरज यथार्थ का साथी

    न अपने लिए लिखा न औरों के लिए, लिखा उस दिल के लिए जिसने दर्द को छुआ । किया संघर्ष उस मझधार में जहां अक्सर डूब जाती है नैया, विश्वास लगन ने मंजिल दी हौंसले थे खेवैया । दर्द को जाना था इसलिए पहचाना था, स्वयं को कलम का मजदूर बताकर बदला साहित्य का जमाना था । कुरीतियों का तिरस्कार किया स्वयं को आगे कर, बाल विधवा से पुनर्विवाह किया । सम्राट यूं ही नहीं बन गए, कितनी तपस्याएं की मुश्किलें उठाई, उलझनें सुलझाईं । देखो निर्मला को- जहां बेमेल विवाह दिखाया, वही कैसे उसने अपना उत्तरदायित्व निभाया । होरी को देखो- किसान का सच दिया, वही अपने मालिकों का…