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रिकॉर्डिंग
एक जमाना थाजब कह देते थे अपनीसुन लेते थे उनकीकर लेते थे दिल हल्काकुछ कहकर अपने मन की। अब सब यहाँ बदल गयामन की कहने से अंतर्मन सहम गयाविश्वास तमाशा बन गयारिकॉर्डिंग से वह छल गयासंबंध व्हाट्सएप में ढल गया।
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मीराबाई – अद्भुत कला की प्रतिमान
मीराबाई, १६वीं शताब्दी की महान संत और कवयित्री हैं। वह कृष्ण की अनन्य भक्त एवं उत्तर भारत की हिंदू परंपरा से संबंध रखती हैं, लेकिन उनकी कृष्ण भक्ति न केवल सम्पूर्ण भारत में अपितु दूसरे देश में भी जानी जाती है। मीराबाई का जन्म भारत के राजस्थान के पाली के कुंडकी जिले के एक राजपूत शाही परिवार में हुआ था। मीराबाई न केवल कृष्ण की भक्त हैं अपितु उनके द्वारा रचित काव्य उन्हें श्रेष्ठ कवयित्री के रूप में भी दर्शाता है। उनका व्यक्तित्व इस प्रकार निखर कर बाहर आया कि सभी के लिए प्रेरणादायी बन गया। मीराबाई और उनके जीवन की कहानियाँ विभिन्न प्रकार की कलाओं जैसे पेंटिंग, मूर्तिकला आदि…
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गुरु गोरखनाथ और हिंदी
नाथ पंथ के प्रवर्तक एवं हठयोग के उपदेशक, महायोगी, गुरु गोरखनाथ का अवतरण एक ऐसे काल में हुआ जब सामाजिक व्यवस्था डगमगाने लगी थी, यहाँ तक कि भारतीय संस्कृति के विनाशक लक्षण प्रत्यक्ष होने लगे थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें अपने युग के सबसे महान धर्म नेता का स्थान दिया है, वे कहते हैं – “शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित महापुरुष भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ।” विभिन्न मतानुसार गुरु गोरखनाथ का आविर्भाव सातवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक माना गया है, वहीं डॉ पीतांबर बड़थ्वाल ने संवत १०५० के आसपास माना है। उनका कहना है – “निर्गुण शाखा वास्तव में योग का ही परिवर्तित रूप…
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एकता की प्रतीक – हिंदी
“अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अंजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।” (जयशंकर प्रसाद) भारत में अंजान क्षितिज को भी सहारा मिल जाता है अर्थात भारत भूमि ने सभी को अपनाया है। कोई भी धर्म हो या कोई भी भाषा, सभी को एक समान भाव से सम्मानित किया है। परंतु राष्ट्र की एकता -अखंडता को बनाए रखने के लिए ‘एक राष्ट्रभाषा’ का होना अत्यंत आवश्यक है। व्यक्ति को व्यक्ति से, व्यक्ति को राष्ट्र से और राष्ट्र को विश्व से जोड़ने वाली भारत की भाषा ‘हिंदी’ ही है। ‘हिंदी’ मात्र भाषा ही नहीं अपितु हृदय भावो को व्यक्त करने का अत्यंत सरल व सुभग माध्यम है । यह अक्षरों में लिपटी शब्दों…
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महान संत-कवयित्री लल्लेश्वरी
कश्मीर की महान संत कवयित्री लल्लेश्वरी का जन्म सन् 1320-1392 माना जाता है। वे ललद्यद, लल, लल्ला, ललदेवी, लैला आदि नामों से प्रसिद्ध हैं। कश्मीरी साहित्य में इनकी रचनाएँ महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और उन्हें ‘लाल वाक्य’ के नाम से भी जाना जाता है। 12 वर्ष की आयु में बाल विवाह और ससुराल से मिली यातनाएँ, दुर्व्यवहार ने, उन्हें घर त्यागने पर विवश कर दिया। वे इस सांसारिक मोह का त्याग कर, ईश्वर मार्ग पर चल पड़ीं। मीरा की भाँति लोक-लाज को छोड़, योग-ध्यान और भक्ति में ऐसी लीन हुईं कि हर संप्रदाय-धर्म का व्यक्ति उन्हें पूजने लगा। जहाँ हिंदू उन्हें लल्लेश्वरी कहकर आदर करते, वहीं मुस्लिम ललारिफा नाम से…
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मेरी अविस्मरणीय यात्रा
‘जीवन का एक नया अध्याय’ यात्रा’ मात्र एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का नाम नहीं है या नए स्थान पर घूमने और मन बहलाने का साधन मात्र भी नहीं है; ‘यात्रा’ एक नए स्थान से परिचित कराती है और सदैव के लिए नया संबंध स्थापित करती है; उस स्थान से जुड़ी प्रत्येक जानकारी के साथ हमारा ज्ञानवर्धन करती है; विचारों में परिवर्तन लाती है; एक नई दृष्टि देती है; इतना ही नहीं जीवन रूपी पुस्तक में एक नए अध्याय के रूप में जुड़ जाती है। यहाँ तक कि हम कह सकते हैं कि कभी-कभी ‘यात्रा’ जीवन को नयी अनुभूति के साथ परिवर्तित ही नहीं करती, अपितु जीवन का…
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स्वीकृत शब्दावली निर्माण के सिद्धांत
1. अंतरराष्ट्रीय शब्दों को यथासंभव उनके प्रचलित अंग्रेजी रूपों में ही अपनाना चाहिए और हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं की प्रकृति के अनुसार ही उनका लिप्यंतरण करना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय शब्दावली के अंतर्गत निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं :(क) तत्व और योगिकों के नाम, जैसे – हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, आदि।( ख) तौल और माप की इकाइयाँ और भौतिक परिमाण की इकाइयाँ, जैसे – डाइन, कैलोरी, ऐम्पियर, आदि।(ग) ऐसे शब्द जो व्यक्तियों के नाम पर बनाए गए हैं, जैसे – मार्क्सवाद (कार्ल मार्क्स), ब्रेल (ब्रेल), बायॅकाट (कैप्टन बायॅकाट), गिलोटिन (डाॅ. गिलोटिन), गेरीमैंडर (मि. गेरी), एम्पियर (मि. एम्पियर), फारेनहाइट तापक्रम (मि. फारेनहाइट) आदि।(घ) वनस्पति विज्ञान, प्राणी विज्ञान, भूविज्ञान आदि की द्विपदी नामावली।(ङ)…
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बलिदानी शीश
मज़लूमों की रक्षा हेतुप्राण त्याग को आतुर थे,हिंद के पीर, शूरवीरगुरु हरगोविंद सुत, तेग बहादुर थे। माँ ‘नानकी’, ‘गुजरी’ पत्नी कोब्रह्मज्ञान दे अलख जगाया,ऐसा पहली बार हुआ जबस्वयं शहीदी को कदम बढ़ाया। किया ऐलान – ‘धर्म न बदलेगा’सुन ले तू अब औरंगजेब!अपनाएंगे इस्लाम सभी जब,पहले अपनाएगा तेग!! बौखलाए दुष्ट ने पहलेभाई सिक्ख ‘मती’ कोआरे से कटवाया,देख न बदल रुख ‘तेग’ का,‘दयाला’ जिंदा जलाया,‘सती’ खोलते पानी में डलवाया। पग न हिला, वचन न डुला,दिया शीश बलिदान,वह ‘शीशगंज’ महान है,‘सिंह’ गुरु गोविंद फिर जग आयासर्वव्याप्त ‘परमात्म’ गुरुजैसे प्रकाशित भानु है।
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एक से सौ तक संख्यावाचक शब्दों का मानक रूप
एक दो तीन चार पाँच छह सात आठ नौ दस ग्यारह बारह तेरह चौदह पंद्रह सोलह सत्रह अठारह उन्नीस बीस इक्कीस बाईस तेईस चौबीस पच्चीस छब्बीस सत्ताईस अट्ठाईस उनतीस तीस इकतीस बत्तीस तैंतीस चौंतीस पैंतीस छत्तीस सैंतीस अड़तीस उनतालीस चालीस इकतालीस बयालीस तैंतालीस चवालीस पैंतालीस छियालीस सैंतालीस अड़तालीस उनचास पचास इक्यावन बावन तिरपन चौवन पचपन छप्पन सत्तावन अट्ठावन उनसठ साठ इकसठ बासठ तिरसठ चौंसठ पैंसठ छियासठ सड़सठ अड़सठ उनहत्तर सत्तर इकहत्तर बहत्तर तिहत्तर चौहत्तर पचहत्तर छिहत्तर सतहत्तर अठहत्तर उनासी अस्सी इक्यासी बयासी तिरासी चौरासी पचासी छियासी सतासी अठासी नवासी नब्बे इक्यानवे बानवे तिरानवे चौरानवे पचानवे छियानवे सतानवे अठानवे निन्यानवे सौ संदर्भप्रशासनिक शब्दावली, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, मानव संसाधन विकास…
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मानक हिंदी वर्तनी
6 अनुस्वार (शिरोबिंदु/बिंदी) तथा अनुनासिकता चिह्न (चंद्रबिंदु) 6.0 अनुस्वार व्यंजन है और अनुनासिकता स्वर का नासिक्य विकार। हिंदी में ये दोनों अर्थभेदक भी हैं। अत हिंदी में अनुस्वार (ं) और अनुनासिकता चिह्न (ँ) दोनों ही प्रचलित रहेंगे। 6.1 अनुस्वार 6.1.1 संस्कृत शब्दों का अनुस्वार अन्यवर्गीय वर्णों से पहले यथावत् रहेगा। जैसे – संयोग, संरक्षण, संलग्न, संवाद, कंस, हिंस्र आदि। 6.1.2 संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचम वर्ण (पंचमाक्षर) के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता और मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए। जैसे – पंकज, गंगा, चंचल, कंजूस, कंठ, ठंडा, संत, संध्या, मंदिर, संपादक, संबंध आदि (पंकज, गंगा,…