• लेख

    एकता की प्रतीक – हिंदी

    “अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अंजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।” (जयशंकर प्रसाद) भारत में अंजान क्षितिज को भी सहारा मिल जाता है अर्थात भारत भूमि ने सभी को अपनाया है। कोई भी धर्म हो या कोई भी भाषा, सभी को एक समान भाव से सम्मानित किया है। परंतु राष्ट्र की एकता -अखंडता को बनाए रखने के लिए ‘एक राष्ट्रभाषा’ का होना अत्यंत आवश्यक है। व्यक्ति को व्यक्ति से, व्यक्ति को राष्ट्र से और राष्ट्र को विश्व से जोड़ने वाली भारत की भाषा ‘हिंदी’ ही है। ‘हिंदी’ मात्र भाषा ही नहीं अपितु हृदय भावो को व्यक्त करने का अत्यंत सरल व सुभग माध्यम है । यह अक्षरों में लिपटी शब्दों…

  • लेख

    महान संत-कवयित्री लल्लेश्वरी

    कश्मीर की महान संत कवयित्री लल्लेश्वरी का जन्म सन् 1320-1392 माना जाता है। वे ललद्यद, लल, लल्ला, ललदेवी, लैला आदि नामों से प्रसिद्ध हैं। कश्मीरी साहित्य में इनकी रचनाएँ महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और उन्हें ‘लाल वाक्य’ के नाम से भी जाना जाता है। 12 वर्ष की आयु में बाल विवाह और ससुराल से मिली यातनाएँ, दुर्व्यवहार ने, उन्हें घर त्यागने पर विवश कर दिया। वे इस सांसारिक मोह का त्याग कर, ईश्वर मार्ग पर चल पड़ीं। मीरा की भाँति लोक-लाज को छोड़, योग-ध्यान और भक्ति में ऐसी लीन हुईं कि हर संप्रदाय-धर्म का व्यक्ति उन्हें पूजने लगा। जहाँ हिंदू उन्हें लल्लेश्वरी कहकर आदर करते, वहीं मुस्लिम ललारिफा नाम से…

  • यात्रा वृतांत

    मेरी अविस्मरणीय यात्रा

    ‘जीवन का एक नया अध्याय’ यात्रा’ मात्र एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का नाम नहीं है या नए स्थान पर घूमने और मन बहलाने का साधन मात्र भी नहीं है; ‘यात्रा’ एक नए स्थान से परिचित कराती है और सदैव के लिए नया संबंध स्थापित करती है; उस स्थान से जुड़ी प्रत्येक जानकारी के साथ हमारा ज्ञानवर्धन करती है; विचारों में परिवर्तन लाती है; एक नई दृष्टि देती है; इतना ही नहीं जीवन रूपी पुस्तक में एक नए अध्याय के रूप में जुड़ जाती है। यहाँ तक कि हम कह सकते हैं कि कभी-कभी ‘यात्रा’ जीवन को नयी अनुभूति के साथ परिवर्तित ही नहीं करती, अपितु जीवन का…

  • मानक हिंदी

    स्वीकृत शब्दावली निर्माण के सिद्धांत

    1. अंतरराष्ट्रीय शब्दों को यथासंभव उनके प्रचलित अंग्रेजी रूपों में ही अपनाना चाहिए और हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं की प्रकृति के अनुसार ही उनका लिप्यंतरण करना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय शब्दावली के अंतर्गत निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं :(क) तत्व और योगिकों के नाम, जैसे – हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, आदि।( ख) तौल और माप की इकाइयाँ और भौतिक परिमाण की इकाइयाँ, जैसे – डाइन, कैलोरी, ऐम्पियर, आदि।(ग) ऐसे शब्द जो व्यक्तियों के नाम पर बनाए गए हैं, जैसे – मार्क्सवाद (कार्ल मार्क्स), ब्रेल (ब्रेल), बायॅकाट (कैप्टन बायॅकाट), गिलोटिन (डाॅ. गिलोटिन), गेरीमैंडर (मि. गेरी), एम्पियर (मि. एम्पियर), फारेनहाइट तापक्रम (मि. फारेनहाइट) आदि।(घ) वनस्पति विज्ञान, प्राणी विज्ञान, भूविज्ञान आदि की द्विपदी नामावली।(ङ)…

  • कविता

    बलिदानी शीश

    मज़लूमों की रक्षा हेतुप्राण त्याग को आतुर थे,हिंद के पीर, शूरवीरगुरु हरगोविंद सुत, तेग बहादुर थे। माँ ‘नानकी’, ‘गुजरी’ पत्नी कोब्रह्मज्ञान दे अलख जगाया,ऐसा पहली बार हुआ जबस्वयं शहीदी को कदम बढ़ाया। किया ऐलान – ‘धर्म न बदलेगा’सुन ले तू अब औरंगजेब!अपनाएंगे इस्लाम सभी जब,पहले अपनाएगा तेग!! बौखलाए दुष्ट ने पहलेभाई सिक्ख ‘मती’ कोआरे से कटवाया,देख न बदल रुख ‘तेग’ का,‘दयाला’ जिंदा जलाया,‘सती’ खोलते पानी में डलवाया। पग न हिला, वचन न डुला,दिया शीश बलिदान,वह ‘शीशगंज’ महान है,‘सिंह’ गुरु गोविंद फिर जग आयासर्वव्याप्त ‘परमात्म’ गुरुजैसे प्रकाशित भानु है।

  • मानक हिंदी

    एक से सौ तक संख्यावाचक शब्दों का मानक रूप

    एक दो तीन चार पाँच छह सात आठ नौ दस ग्यारह बारह तेरह चौदह पंद्रह सोलह सत्रह अठारह उन्नीस बीस इक्कीस बाईस तेईस चौबीस पच्चीस छब्बीस सत्ताईस अट्ठाईस उनतीस तीस इकतीस बत्तीस तैंतीस चौंतीस पैंतीस छत्तीस सैंतीस अड़तीस उनतालीस चालीस इकतालीस बयालीस तैंतालीस चवालीस पैंतालीस छियालीस सैंतालीस अड़तालीस उनचास पचास इक्यावन बावन तिरपन चौवन पचपन छप्पन सत्तावन अट्ठावन उनसठ साठ इकसठ बासठ तिरसठ चौंसठ पैंसठ छियासठ सड़सठ अड़सठ उनहत्तर सत्तर इकहत्तर बहत्तर तिहत्तर चौहत्तर पचहत्तर छिहत्तर सतहत्तर अठहत्तर उनासी अस्सी इक्यासी बयासी तिरासी चौरासी पचासी छियासी सतासी अठासी नवासी नब्बे इक्यानवे बानवे तिरानवे चौरानवे पचानवे छियानवे सतानवे अठानवे निन्यानवे सौ संदर्भप्रशासनिक शब्दावली, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, मानव संसाधन विकास…

  • मानक हिंदी

    मानक हिंदी वर्तनी

    6 अनुस्वार (शिरोबिंदु/बिंदी) तथा अनुनासिकता चिह्‍न (चंद्रबिंदु) 6.0 अनुस्वार व्यंजन है और अनुनासिकता स्वर का नासिक्‍य विकार। हिंदी में ये दोनों अर्थभेदक भी हैं। अत हिंदी में अनुस्वार (ं) और अनुनासिकता चिह्‍न (ँ) दोनों ही प्रचलित रहेंगे। 6.1 अनुस्वार 6.1.1 संस्कृत शब्दों का अनुस्वार अन्यवर्गीय वर्णों से पहले यथावत् रहेगा। जैसे – संयोग, संरक्षण, संलग्न, संवाद, कंस, हिंस्र आदि। 6.1.2 संयुक्‍त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचम वर्ण (पंचमाक्षर) के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता और मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए। जैसे – पंकज, गंगा, चंचल, कंजूस, कंठ, ठंडा, संत, संध्या, मंदिर, संपादक, संबंध आदि (पंकज, गंगा,…

  • मानक हिंदी

    देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण

    हिंदी भारतीय संघ तथा हिंदी-भाषी राज्यों की राजभाषा है। हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। इसे नागरी लिपि भी कहते हैं। किसी भी भाषा के प्रचार-प्रसार को सरल बनाने के लिए यह जरूरी है कि उस भाषा का प्रयोग करने वाले सभी लोग एक ही तरह के अंक और वर्ण प्रयोग में लाएं। साथ ही, यह भी आवश्यक है कि शब्द विशेष को सभी लोग एक ही तरीके से लिखें। ऐसा न होने से भाषा में अराजकता आ जाती है और उसका कोई मानक रूप नहीं रह जाता। हिंदी के संदर्भ में इस कमी को दूर करने के लिए केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार ने शीर्षस्थ विद्वानों आदि के साथ…

  • कविता

    त्योहार अपनी मिट्टी का

    त्योहार अपनी मिट्टी कारंग और गुलाल काप्रेम का सौहार्द काखुशियों और उल्लास का।लाल-हरा ये नीला-पीलारंग गुलाबी सबसे रंगीलाधरा-गगन पर जब ये बिखरेबन जाएँ इंद्रधनुष ही कितने।मनमुटाव, रंजिशें गहरीभस्म कर देती होली की अग्निसूरज चिढ़ता आज देख नज़ाराफीका उसका रंग होली ने कर डाला।होती नयी सुबह गले से गले मिलचारों ओर ढोल-बाजे की धुनगुजिया, हिस्से, लड्डू की मिठासघुल जाती हर मन में, बढ़ जाती आस।रंग आज नहीं पिचकारी में तो क्याभर लो इन्हे अब अंतर्मन मेंडालो सबके सुंदर मन मेंऐसा अद्भुत रंग चमकेगाजैसे नाचे मोर बिखेर पंख वन में। 29,मार्च 2021 राजस्थान पत्रिका, चेन्नई में प्रकाशित

  • कविता

    संघर्ष ही शक्ति

    बिखरी लालिमा नभ-धरा परबढ़ते कदम सब थम गए,जो जहाँ थे खड़े वहीं परसबके सब पिघल गए ।कोई घर से दूर तो कहींमाँ-बाप की चिंता सता रही,मिलने की है आस परनिराशा हाथ आ रही ।कुछ ऐसा मंजर बदल गयाघर के अंदर सब ढल गया,जन्मा ऐसा राक्षस जग मेंनिगल रहा दुर्बल को पल में।हाहाकार यूँ मच रहाजिसको छुआ वो सिहर रहा,जीवनभर जिसने साथ दियातन वह लावारिस हुआ ।हर रिश्ता अब दूर हुआहालात से मजबूर हुआ,बच्चों की हँसी गुम हो गईचार दीवारों में फँस गई ।रोज़ आमदनी पर जो निर्भरजीवन हुआ बहुत ही दुर्लभ,ठहर गया ये मानव जीवनप्रतीक्षा में बैचेन हुआ मन।हवा भी विषमुक्त हो गईप्रकृति सबसे कुछ तो कह रही,पशु-पक्षी स्वतंत्र हो…