लेख
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संत साहित्य की वर्तमान प्रासंगिकता (संत रामानन्द)
संत रामानन्द कहते हैं अति किसी की भी अच्छी नहीं होती, बदलाव संसार का नियम है…. ऐसे ही एक बदलाव की आवश्यकता थी समाज को जब जाति-पाँति, ऊंच-नीच, छुआ-छूत जैसी बीमारियों ने चारों ओर अपने पैर फैला लिए थे। सांप्रदायिकता, धर्म- अधर्म और धर्म बदलाव जैसे घातक विचार से समाज ग्रसित हो रहा था। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है;यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥१धर्म की हानि हो और ईश्वर चुपचाप देखता रहे, ऐसा असंभव है! अतः समाज में बदलाव होना ही था और इस बदलाव का बीज बोया संत रामानंद जी ने, जो ईश्वर के अवतार रूप में प्रकट हुए। बुद्ध हो या महावीर,…
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सुखी और संपन्न भारत की प्रतीक : गौ माता
तुल्यनामानि देयानी त्रीणि तुल्यफलानि च।सर्वकामफलानीह गाव: पृथ्वी सरस्वती।। (महाभारत, अनु. ६९/४) अर्थात गाय, भूमि और सरस्वती, तीनों नाम एक समान हैं। तीनों का दान करने से समान फल की प्राप्ति होती है। यह तीनों मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूरा करती हैं। परंतु आज ये तीनों दान लगभग समाप्त हो चुके हैं। शायद यही कारण है कि आज काल के विकराल रूप की भयावह स्थिति में सभी कामनाएं विफल हो रही हैं। जिस गृह में गौ माता का वास है, वहां कोई भी विषाणु का प्रवेश नहीं हो सकता। गाय के आसपास का स्थान सदा शुद्ध रहता है। वहाँ, गौमूत्र और गोबर से उत्सर्जित गंध, आस-पास की जहरीली वायु को अवशोषित…
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नारी- पुरुष समान हैं और भिन्न भी
नारी एक ऐसा रहस्य है जिसे सभी ने अपने- अपने दृष्टिकोण से जानने का प्रयास किया और उसे परिभाषित किया। यदि हम आज की बात करें तो हर कोई नारी उत्थान और उसकी समस्या पर चर्चा कर रहा है। कभी नारी की पारिवारिक स्थिति को बदलने और उसे परिवार, समाज मे सम्मान, उचित स्थान दिलाने तो कभी पुरुषों से तुलना करते हुए समानता के अधिकार की बात की जा रही है। नारी प्रारंभ से ही पुरुष के समान है। उसकी सहभागिता प्रत्येक स्थान पर उतनी ही है जितनी पुरुष की। यहां तक कि वेद-पुराणों और शास्त्रों में उसका स्थान सर्वोपरि बताया गया है। नारी को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ स्थान…