कविता
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तुम शिव की शक्ति
हे नारी! तुम शिव की शक्ति इस धरा पर भक्ति ममता की मूरत प्रेम की सूरत जीवन दायिनी हो तुम ! हे नारी! भावों को समेटे धैर्य को लपेटे अँधेरे को गहराई में उतारे चेहरे पर लालिमा बिखरे चहूँ-ओर आलोक फैलाती हो तुम !! हे नारी!तुम्हें समझने वाली मात्र तुम तेरी अद्भुत सृष्टि में सब कुछ अनोखा हो जाता कुरूप को सुंदर मृत को भी प्राणमय बनाती हो तुम!!! हे नारी! तुम शिव की शक्ति!!!!
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पड़ाव
एक बार कहा था मैंनेउस सितारे से एक दिन चमकूंगी तेरी तरहपर इतनी दूर नहीं जहाँतेरे टूटने की प्रतीक्षा मेंनज़रें गड़ाए ज़िंदगी बिता देते हैंतुझसे उम्मीद रखने वाले। ठहर जाऊँगी मैं उस पड़ाव पर हीजहाँ से देख सकूंगी उन चेहरों कोजो आस लगाए बैठे हैं औरटूट जाया करूँगी बार-बारउनके चेहरे पर मुस्कराहट लाने के लिए।
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रिकॉर्डिंग
एक जमाना थाजब कह देते थे अपनीसुन लेते थे उनकीकर लेते थे दिल हल्काकुछ कहकर अपने मन की। अब सब यहाँ बदल गयामन की कहने से अंतर्मन सहम गयाविश्वास तमाशा बन गयारिकॉर्डिंग से वह छल गयासंबंध व्हाट्सएप में ढल गया।
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बलिदानी शीश
मज़लूमों की रक्षा हेतुप्राण त्याग को आतुर थे,हिंद के पीर, शूरवीरगुरु हरगोविंद सुत, तेग बहादुर थे। माँ ‘नानकी’, ‘गुजरी’ पत्नी कोब्रह्मज्ञान दे अलख जगाया,ऐसा पहली बार हुआ जबस्वयं शहीदी को कदम बढ़ाया। किया ऐलान – ‘धर्म न बदलेगा’सुन ले तू अब औरंगजेब!अपनाएंगे इस्लाम सभी जब,पहले अपनाएगा तेग!! बौखलाए दुष्ट ने पहलेभाई सिक्ख ‘मती’ कोआरे से कटवाया,देख न बदल रुख ‘तेग’ का,‘दयाला’ जिंदा जलाया,‘सती’ खोलते पानी में डलवाया। पग न हिला, वचन न डुला,दिया शीश बलिदान,वह ‘शीशगंज’ महान है,‘सिंह’ गुरु गोविंद फिर जग आयासर्वव्याप्त ‘परमात्म’ गुरुजैसे प्रकाशित भानु है।
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त्योहार अपनी मिट्टी का
त्योहार अपनी मिट्टी कारंग और गुलाल काप्रेम का सौहार्द काखुशियों और उल्लास का।लाल-हरा ये नीला-पीलारंग गुलाबी सबसे रंगीलाधरा-गगन पर जब ये बिखरेबन जाएँ इंद्रधनुष ही कितने।मनमुटाव, रंजिशें गहरीभस्म कर देती होली की अग्निसूरज चिढ़ता आज देख नज़ाराफीका उसका रंग होली ने कर डाला।होती नयी सुबह गले से गले मिलचारों ओर ढोल-बाजे की धुनगुजिया, हिस्से, लड्डू की मिठासघुल जाती हर मन में, बढ़ जाती आस।रंग आज नहीं पिचकारी में तो क्याभर लो इन्हे अब अंतर्मन मेंडालो सबके सुंदर मन मेंऐसा अद्भुत रंग चमकेगाजैसे नाचे मोर बिखेर पंख वन में। 29,मार्च 2021 राजस्थान पत्रिका, चेन्नई में प्रकाशित
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संघर्ष ही शक्ति
बिखरी लालिमा नभ-धरा परबढ़ते कदम सब थम गए,जो जहाँ थे खड़े वहीं परसबके सब पिघल गए ।कोई घर से दूर तो कहींमाँ-बाप की चिंता सता रही,मिलने की है आस परनिराशा हाथ आ रही ।कुछ ऐसा मंजर बदल गयाघर के अंदर सब ढल गया,जन्मा ऐसा राक्षस जग मेंनिगल रहा दुर्बल को पल में।हाहाकार यूँ मच रहाजिसको छुआ वो सिहर रहा,जीवनभर जिसने साथ दियातन वह लावारिस हुआ ।हर रिश्ता अब दूर हुआहालात से मजबूर हुआ,बच्चों की हँसी गुम हो गईचार दीवारों में फँस गई ।रोज़ आमदनी पर जो निर्भरजीवन हुआ बहुत ही दुर्लभ,ठहर गया ये मानव जीवनप्रतीक्षा में बैचेन हुआ मन।हवा भी विषमुक्त हो गईप्रकृति सबसे कुछ तो कह रही,पशु-पक्षी स्वतंत्र हो…
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अपने दम पर
करना हो कुछ,अपने दम पर करो !दूसरों पर भरोसा,थका देगा, हरा देगा,अपने दम पर हीरास्ता तय होगामंजिल तक पहुंचने का । साथ,बीच में छूट जाएगातुम्हें भटकाएगा,रह जाओगे अकेलेकिसी सुनसान वीराने में,जहाँ स्वयं को ढूंढ़नाआसान न होगा ।
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दो शब्द नहीं…
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सागर में लीन
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नाता
कहाँ किसका किससे क्या नाता है? एक आता और एक जाता है। बस एक तथ्य सत्य बताता है, हम सबको वो ‘एक’ ही बनाता है, इस नाते आपका और हमारा, बड़ा गहरा और दिव्य नाता है।