मानक हिंदी
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अनुस्वार (ं) और चंद्र बिंदु (ँ) संबंधी अशुद्धियाँ
अनुस्वार के स्थान पर चंद्रबिंदु लगाइए* अशुद्ध रूपअंगीठीअंगूठाअंग्रेजीआंसूकंटीलाकांटागांधीजाऊंगाजूंडांटढंगतांगातांबादांवपांचफांसीबांदामांरोटियांसांपहंसीहां-हूंहोउंगी शुद्ध रूप*अँगीठीअँगूठाअँग्रेजीआँसूकँटीलाकाँटा (कंटक सही है)गाँधी (गंदी सही है)जाऊँगाजूँडाँटढँगताँगाताँबादाँवपाँचफाँसीबाँदामाँरोटियाँसाँपहँसीहाँ-हूँहोउँगी * अनुस्वार के स्थान पर चंद्रबिंदु का प्रयोग करना पूर्णत: अशुद्ध है। चंद्रबिंदु (ँ) के स्थान पर अनुस्वार (ं) लगाइए अशुद्ध रूपअँकअँकुशअँजनएवँक्रमाँकदिनाँकपँचबाराबँकीरँगविशेषाँकसँस्कृतसँयोगस्वयँ शुद्ध रूपअंकअंकुशअंजनएवंक्रमांकदिनांकपंच ( पाँच सही है)बाराबंकीरंगविशेषांकसंस्कृतसंयोगस्वयं अनुस्वार न लगाइए अशुद्ध रूपजाएंगींओंठगेंहूँचाहिएंदोस्तों शुद्ध रूपजाएंगी*ओठगेहूँ चाहिए**दोस्तो*** (संबोधन में, जैसे-प्रिय दोस्तो!) अशुद्ध रूपनींबूनोंकपूछतांछबीचोंबीचभींगनामहीनेंमानोंहोंठो शुद्ध रूपनीबूनोकपूछताछबीचोबीचभीगनामहीनेमानोहोठों * भविष्यत् काल में बहुवचन में- गें, गीं नहीं होता। इनसे पूर्व का स्वर प्रभावित होता है, जैसे- जाएगी > जाएंगी > जाएंगे आदि।भूतकाल में स्त्रीलिंग में अनुस्वार लगता है, जैसे-आई > आईं ; लेकिन पुल्लिंग > बहुवचन में अनुस्वार नहीं लगता, जैसे आया > आए आदि । ** ‘मुझे…
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शुद्ध हिंदी लेखन
हिंदी का प्रयोग-क्षेत्र विस्तृत है। हिंदी की 18 बोलियाँ व उनकी उपबोलियाँ और उनके भी स्थानीय रूप होने के कारण, भाषा में अनेक भिन्नताएँ दिखाई देती हैं, जिससे उसके लेखन-शैली में विविधता आ जाती है। इस प्रकार, किसी वाक्य रचना या शब्दों का शुद्ध-अशुद्ध कहना कठिन हो जाता है, शब्दों के उच्चारण एवं लेखन में प्राय: एकरूपता का अभाव भी दिखाई देता है। अतः भाषा का मानक रूप, उसे पढ़ने, लिखने व समझने में एकरूपता के साथ सहजता प्रदान करता है एवं संप्रेषण को प्रभावी बनाता है। यहाँ, भाषा के शुद्ध व मानक रूप द्वारा हिंदी-लेखन में विभिन्न प्रकार की अशुद्धियों से परिचित कराया गया है। वर्तनी-संबंधी अशुद्धियाँ ‘अ’ के…
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स्वीकृत शब्दावली निर्माण के सिद्धांत
1. अंतरराष्ट्रीय शब्दों को यथासंभव उनके प्रचलित अंग्रेजी रूपों में ही अपनाना चाहिए और हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं की प्रकृति के अनुसार ही उनका लिप्यंतरण करना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय शब्दावली के अंतर्गत निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं :(क) तत्व और योगिकों के नाम, जैसे – हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, आदि।( ख) तौल और माप की इकाइयाँ और भौतिक परिमाण की इकाइयाँ, जैसे – डाइन, कैलोरी, ऐम्पियर, आदि।(ग) ऐसे शब्द जो व्यक्तियों के नाम पर बनाए गए हैं, जैसे – मार्क्सवाद (कार्ल मार्क्स), ब्रेल (ब्रेल), बायॅकाट (कैप्टन बायॅकाट), गिलोटिन (डाॅ. गिलोटिन), गेरीमैंडर (मि. गेरी), एम्पियर (मि. एम्पियर), फारेनहाइट तापक्रम (मि. फारेनहाइट) आदि।(घ) वनस्पति विज्ञान, प्राणी विज्ञान, भूविज्ञान आदि की द्विपदी नामावली।(ङ)…
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एक से सौ तक संख्यावाचक शब्दों का मानक रूप
एक दो तीन चार पाँच छह सात आठ नौ दस ग्यारह बारह तेरह चौदह पंद्रह सोलह सत्रह अठारह उन्नीस बीस इक्कीस बाईस तेईस चौबीस पच्चीस छब्बीस सत्ताईस अट्ठाईस उनतीस तीस इकतीस बत्तीस तैंतीस चौंतीस पैंतीस छत्तीस सैंतीस अड़तीस उनतालीस चालीस इकतालीस बयालीस तैंतालीस चवालीस पैंतालीस छियालीस सैंतालीस अड़तालीस उनचास पचास इक्यावन बावन तिरपन चौवन पचपन छप्पन सत्तावन अट्ठावन उनसठ साठ इकसठ बासठ तिरसठ चौंसठ पैंसठ छियासठ सड़सठ अड़सठ उनहत्तर सत्तर इकहत्तर बहत्तर तिहत्तर चौहत्तर पचहत्तर छिहत्तर सतहत्तर अठहत्तर उनासी अस्सी इक्यासी बयासी तिरासी चौरासी पचासी छियासी सतासी अठासी नवासी नब्बे इक्यानवे बानवे तिरानवे चौरानवे पचानवे छियानवे सतानवे अठानवे निन्यानवे सौ संदर्भप्रशासनिक शब्दावली, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, मानव संसाधन विकास…
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मानक हिंदी वर्तनी
6 अनुस्वार (शिरोबिंदु/बिंदी) तथा अनुनासिकता चिह्न (चंद्रबिंदु) 6.0 अनुस्वार व्यंजन है और अनुनासिकता स्वर का नासिक्य विकार। हिंदी में ये दोनों अर्थभेदक भी हैं। अत हिंदी में अनुस्वार (ं) और अनुनासिकता चिह्न (ँ) दोनों ही प्रचलित रहेंगे। 6.1 अनुस्वार 6.1.1 संस्कृत शब्दों का अनुस्वार अन्यवर्गीय वर्णों से पहले यथावत् रहेगा। जैसे – संयोग, संरक्षण, संलग्न, संवाद, कंस, हिंस्र आदि। 6.1.2 संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचम वर्ण (पंचमाक्षर) के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता और मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए। जैसे – पंकज, गंगा, चंचल, कंजूस, कंठ, ठंडा, संत, संध्या, मंदिर, संपादक, संबंध आदि (पंकज, गंगा,…
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देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण
हिंदी भारतीय संघ तथा हिंदी-भाषी राज्यों की राजभाषा है। हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। इसे नागरी लिपि भी कहते हैं। किसी भी भाषा के प्रचार-प्रसार को सरल बनाने के लिए यह जरूरी है कि उस भाषा का प्रयोग करने वाले सभी लोग एक ही तरह के अंक और वर्ण प्रयोग में लाएं। साथ ही, यह भी आवश्यक है कि शब्द विशेष को सभी लोग एक ही तरीके से लिखें। ऐसा न होने से भाषा में अराजकता आ जाती है और उसका कोई मानक रूप नहीं रह जाता। हिंदी के संदर्भ में इस कमी को दूर करने के लिए केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार ने शीर्षस्थ विद्वानों आदि के साथ…