मेरा दिव्य संसार

  • मेरा दिव्य संसार

    सब कुछ छूट जाएगा

    जब सोचोगे यह मेरा हैयह भ्रम तेरा टूट जाएगा,जो कुछ अपना माना थावह सब कुछ छूट जाएगा।तन्हा खुद को पाओगेजब जरूरत सबसे अधिक होगी,हर बनने वाला खास तेरादूर-दूर नज़र न आएगा।जब सोचोगे यह मेरा हैयह भ्रम तेरा टूट जाएगा…। दुनिया का दस्तूर है यहउगते सूरज को प्रणाम हैढलते की परवाह है किसेअब चैन से सोने की तलाश हैहर कोई अब तेरा अपनाकहीं और सपने सजाएगाजब सोचोगे यह मेरा हैयह भ्रम तेरा टूट जाएगा…। कृपा प्रभु की ऐसी बरसीमायाजाल अब कट जाएगायह अंधकार जीवन में तेरेनवचेतन को जगाएगाऐसा होगा सूर्योदय फिरजीवन, चिर प्रकाश बन जाएगा।जब सोचोगे यह मेरा हैयह भ्रम तेरा टूट जाएगा,जो कुछ अपना माना थावह सब कुछ छूट जाएगा।

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    ज़रूरी था ठहरना

    क्या ज़रूरी था ठहरना?वहाँ, जहाँ कोई नहीं थाअकेले रास्ते पर नज़रें गढ़ाएजहाँ से किसी के आने कीउम्मीद लगाएकभी पलट कर, कभी दाएँ-बाएँपर कुछ नज़र न आएक्या ज़रूरी था ठहरना? एकाएक साँय-साँय की आवाज़जैसे कोई तूफ़ान का आगाज़अगले क्षण क्या होगापता नहींजो बीत गयावह साथ नहींबस खड़ीन किसी उम्मीद मेंन किसी भय मेंसिर्फ मैं और वह सन्नाटाऔर मैं भी कहाँउस सन्नाटे मेंखो जो चुकी थीथा तो बस वह ‘एक’जो ‘परम्’ हैउसकी आवाज़, उसका एहसासऔर उसका साथइसी सन्नाटे में हैहाँ ज़रूरी था ठहरना!बहुत ज़रूरी था ठहरना!!

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    अंतिम साँस

    अंतिम साँस तक लड़ी हिम्मत न हारी इस आस में कि कोई न कोई किनारा मिल ही जाएगा घोर घटाओं ने घेरा आँधी तूफानों को झेला किस्मत ने साथ छोड़ा हर उसने साथ छोड़ा जो कभी मेरा अपना था उसने भी मुँह मोड़ा जिससे मेरे जीवन में हर क्षण सवेरा था टूट गई मैं हर आस से छूट गई मैं डूब रही हूँ इस समुद्र की गहराई में जो उबार लेगी मुझे सदा के लिए इस संसार की परछाई से…

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    ओ राधारानी! तुम हो कौन?

    ओ राधारानी! तुम हो कौन? बृषभान दुलारी या नंदलाल की प्यारी होगोपियों की सखी या बरसाने की रानी हो                  ओ राधारानी! तुम हो कौन? तुम्हारा नाम, यमुना के कल-कल में तुम्हारा नाम, वृंदावन की कुंजगली में तुम्हारा नाम, हर प्राणी के अंतसमन में तुम्हारा नाम, गिरधर की मुरली में                  ओ राधारानी! तुम हो कौन? अरे राधा! तुम्हारी सुंदरता पर, चाँद-सूरज भी लजाएँ तुम्हारी मुस्कान पर, फूल भी लहराएँ तुम्हारी एक दृष्टि को, प्रकृति भी ललचाए तुम्हारे प्यार पर, स्वयं प्रभु भी झुक जाएँ                  ओ राधारानी! तुम हो कौन? अरे राधा! संज्ञान में आया,  तुम कृष्ण का प्रेम हो तुम कृष्ण का भेद हो तुम ही कृष्ण की…

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    कहाँ था तुम्हारा यह प्रेम?

    हे कृष्णा! कैसे तुम चुप रह सकते हो? क्या इन आँसुओं से तुम्हारा हृदय नहीं पिघलता? कैसे देखकर भी, अनदेखा करते हो? तड़पता छोड़कर अचानक चले जाते हो, कभी हाल-चाल पूछने भी नहीं आते! हाँ, तुम तो त्रिकालदर्शी हो!! सब कुछ तमाशे की तरह देखते रहते हो!!! एक बात बताओ, उद्धव को उसके अहंकार को तोड़ने के लिए यहाँ भेजा या हमारा मन बदलने के लिए! कहीं ऐसा तो नहीं, हमारा प्रेम जाँचने के लिए!! हमारा तो एक ही हृदय है जिसमें सदा तुम ही बसते हो तो बदलता कैसे!!! परंतु, लगता है तुम्हारा ह्रदय अवश्य पत्थर का हो गया है! क्या होता, अंत में अपनी बाँसुरी फेंक दिखाते हो…