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    वैतरणी

    “अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।।” — ब्रह्मवैवर्तपुराण १/४४/७४ अर्थात् व्यक्ति को अपने द्वारा किए गए शुभ-अशुभ कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। न मात्र मानव शरीर में अपितु मृत्यु के पश्चात् पिंड रूप में शरीर धारण करने वाली आत्मा को अपने सुकर्मानुसार स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है, वहीं पापी को यममार्ग की यातना झेलते हुए नरक भोगना पड़ता है। “पापीना मैहिक॔ दु:खं यथा भवती तच्छृणु।ततस्ते मरणं प्राप्य यथा गच्छन्ति यात्नाम्।।” गरुड़ पुराण, १।१८।। एक बार गरुड़ को नर्क और यममार्ग जानने की इच्छा जागृत हुई, तब भगवान विष्णु गरुड़ को यममार्ग और नरकलोक के बारे में बताते हैं, जिसका संपूर्ण विवरण ‘गरुड़ पुराण’ में मिलता है। उल्लेखनीय है…

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    प्रेरणा का स्वरूप : प्रतिकूल परिस्थितियाँ

    प्रतिकूल परिस्थितियाँ हमारे जीवन में सदैव एक बदलाव लाती हैं और यह बदलाव हमें समृद्धि की ओर ले जाता है। ये, हमें डराती अवश्य हैं परंतु मानसिक स्तर पर बहुत मजबूत बनाती हैं। ये, हमारे लिए प्रेरणा बनकर आती हैं क्योंकि इन क्षणों में हमारी धैर्य-शक्ति पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ जाती है और हमारी सोचने-समझने की क्षमता भी पहले से बेहतर हो जाती है।प्रतिकूल परिस्थिति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह सबसे पहले हमारे अहं को तोड़ती है, जो मनुष्य का सबसे बडा शत्रु होता है, क्योंकि व्यक्ति के पतन का कारण ही अहं है। अतः प्रतिकूल परिस्थिति हमारे लिए एक मित्र का कार्य करती है, जिसकी…

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    आत्मनिर्भर भारत

    सकारात्मक दृष्टि से आत्मनिर्भर होगा देश एक दृष्टि हम अपने प्राचीन भारत पर डालते हैं तो पातें हैं कि 2,500 ई.पू. ही हमारे भारत देश में कृषि, मिट्टी के बर्तन बनाने की कला, औजार, आभूषण, मानव निर्मित वस्तुओं तथा मिश्रित धातु की मूर्तियों के निर्माण का कौशल विस्तृत हो चुका था। शहरों का विकास, सिक्कों का इस्तेमाल, शास्त्रों की रचना, ज्ञान-विज्ञान, योग, आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा जैसी अद्भुत क्रियाओं से समृद्ध भारत देश, प्रगति पथ पर बहुत आगे था। विदेशी आक्रमणों का सामना करते-करते देश विकास मार्ग में बाधित होता गया, बढ़ती जनसंख्या, अकाल तथा गरीबी के साथ-साथ अपना देश विदेशी शासकों द्वारा दमन और दरिद्रता का शिकार होता गया।स्वतंत्रता आंदोलन…

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    ‘गोशाला’ से पवित्र स्थल, दुनिया में कहीं भी नहीं…

    महर्षि वशिष्ठ जी ने कहा है – “गाव: स्वस्त्ययनं महत्” अर्थात् ‘गो मंगल का परम् निधान है।’ जहाँ गोमाता का पालन-पोषण भली-भाँति नहीं होता, वहाँ अमंगल दशा देखने को मिलती है और जहाँ गोमाता की पूजा होती है, वहाँ संपन्नता व आनंद की वर्षा होती है। यही कारण था कि पूर्वकाल में राजा गोधन को ही सर्वश्रेष्ठ मानते थे; गोपूजा, गोदान की प्रथा प्रचलित थी। समय के साथ भारतीय संस्कृति का सर्वश्रेष्ठ आचरण ‘गोसेवा’ लुप्त होती गई और जिस देश में दूध की नदियाँ बहती थीं, वहाँ गरीबी बढ़ती गई। भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आचार्य विनोबा भावे जी ने कहा है – “हिंदुस्तानी सभ्यता का नाम ही ‘गोसेवा’ है।”महानगर…

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    युगदृष्टा स्वामी विवेकानंद

    “जिस चरित्र में ज्ञान, भक्ति और योग – इन तीनों का सुंदर सम्मिश्रण है, वही सर्वोत्तम कोटि का है। एक पक्षी के उड़ने के लिए तीन अंगों की आवश्यकता होती है – दो पंख और पतवारस्वरूप एक पूँछ। ज्ञान एवं भक्ति मानो तो पंख है और योग पूँछ, जो सामंजस्य बनाए रखता है।” ऐसे दार्शनिक, विचारक, लेखक, वक्ता, देशभक्त, भक्त, मानव व प्रकृति प्रेमी युगदृष्टा स्वामी विवेकानंद, जिन्होंने मात्र 25 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिया। वे सत्य की खोज में तब तक प्रयासरत रहे, जब तक उसे पा नहीं लिया।मात्र 30 वर्ष की आयु में शिकागो सम्मेलन में भारत देश की संस्कृति, सभ्यता अध्यात्म, धर्म को सम्मान दिलाया,…

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    संत कवयित्री सहजोबाई

    हिंदी साहित्य के भक्ति काल में यदि किसी संत कवयित्री की बात की जाए तो तुरंत ही मीराबाई का नाम जिह्वा पर होता है, परंतु यह भी विचारणीय है कि उनके अलावा किसी अन्य महिला संत का आविर्भाव नहीं हुआ। भक्त मीराबाई के समान चारों और भक्ति की सुगंध फैलाने वाली 18वीं सदी की सहजोबाई भी अविस्मरणीय स्थान रखती हैं।सहजोबाई का जन्म 25 जुलाई, सन् 1725 दिल्ली माना जाता है, वहीं, कहीं-कहीं 15 जुलाई, सन् 1724 का भी उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि राजस्थान में उनका जन्म हुआ और बाद में, वे सपरिवार दिल्ली आ गईं। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। शादी के समय एक ऐसी घटना…

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    गुरु गोरखनाथ और हिंदी

    नाथ पंथ के प्रवर्तक एवं हठयोग के उपदेशक, महायोगी, गुरु गोरखनाथ का अवतरण एक ऐसे काल में हुआ जब सामाजिक व्यवस्था डगमगाने लगी थी, यहाँ तक कि भारतीय संस्कृति के विनाशक लक्षण प्रत्यक्ष होने लगे थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें अपने युग के सबसे महान धर्म नेता का स्थान दिया है, वे कहते हैं – “शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित महापुरुष भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ।” विभिन्न मतानुसार गुरु गोरखनाथ का आविर्भाव सातवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक माना गया है, वहीं डॉ पीतांबर बड़थ्वाल ने संवत १०५० के आसपास माना है। उनका कहना है – “निर्गुण शाखा वास्तव में योग का ही परिवर्तित रूप…

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    एकता की प्रतीक – हिंदी

    “अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अंजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।” (जयशंकर प्रसाद) भारत में अंजान क्षितिज को भी सहारा मिल जाता है अर्थात भारत भूमि ने सभी को अपनाया है। कोई भी धर्म हो या कोई भी भाषा, सभी को एक समान भाव से सम्मानित किया है। परंतु राष्ट्र की एकता -अखंडता को बनाए रखने के लिए ‘एक राष्ट्रभाषा’ का होना अत्यंत आवश्यक है। व्यक्ति को व्यक्ति से, व्यक्ति को राष्ट्र से और राष्ट्र को विश्व से जोड़ने वाली भारत की भाषा ‘हिंदी’ ही है। ‘हिंदी’ मात्र भाषा ही नहीं अपितु हृदय भावो को व्यक्त करने का अत्यंत सरल व सुभग माध्यम है । यह अक्षरों में लिपटी शब्दों…

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    महान संत-कवयित्री लल्लेश्वरी

    कश्मीर की महान संत कवयित्री लल्लेश्वरी का जन्म सन् 1320-1392 माना जाता है। वे ललद्यद, लल, लल्ला, ललदेवी, लैला आदि नामों से प्रसिद्ध हैं। कश्मीरी साहित्य में इनकी रचनाएँ महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और उन्हें ‘लाल वाक्य’ के नाम से भी जाना जाता है। 12 वर्ष की आयु में बाल विवाह और ससुराल से मिली यातनाएँ, दुर्व्यवहार ने, उन्हें घर त्यागने पर विवश कर दिया। वे इस सांसारिक मोह का त्याग कर, ईश्वर मार्ग पर चल पड़ीं। मीरा की भाँति लोक-लाज को छोड़, योग-ध्यान और भक्ति में ऐसी लीन हुईं कि हर संप्रदाय-धर्म का व्यक्ति उन्हें पूजने लगा। जहाँ हिंदू उन्हें लल्लेश्वरी कहकर आदर करते, वहीं मुस्लिम ललारिफा नाम से…

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    सृष्टि की श्रेष्ठ रचना

    नारी एक ऐसा रहस्य है जिसे सभी ने अपने -अपने दृष्टिकोण से जानने का प्रयास किया। वेद-पुराणों और शास्त्रों में उसका स्थान सर्वोपरि बताया गया है।“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है। वह संपूर्ण सृष्टि में एकमात्र ऐसी रचना है जो प्रेम, करुणा, दया, धैर्य, सहनशीलता, क्षमा आदि सद्गुणों से पूर्ण है। जिसे वह अर्जित नहीं करती अपितु यह उसके मूल प्रवृति में समाहित होते हैं। वह इन गुणों के साथ जहां भी वास करती है वह स्थान पवित्र, सुखमय, आनंदपूर्ण, वैभवशाली, समृद्धि, शांतिपूर्ण में परिवर्तित हो जाता है। नारी अपने इतने रूपों को धारण करती है कि संसार में उसके समान…