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    “गुरु न तजूँ हरि कूँ तजि डारूँ”

    ‘गुरु’ अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। गुरु का अर्थ या उसकी परिभाषा शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। किसी वस्तु या व्यक्ति का वर्णन किया जा सकता है परंतु गुरु का कितना भी वर्णन किया जाए, उसके वास्तविक स्वरूप और गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता। गुरु अनिर्वचनीय है, अवर्णनीय है, इसलिए संत कबीर दास जी भी कहते हैं –“सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय।सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय।।”गुरु न सुनने के लिए है, न समझने के लिए। गुरु न पढ़ने के लिए है, न मानने के लिए। यह सब मन को समझाने और उसे संतुष्ट करने के उपाय…

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    मीराबाई – अद्भुत कला की प्रतिमान

    मीराबाई, १६वीं शताब्दी की महान संत और कवयित्री हैं। वह कृष्ण की अनन्य भक्त एवं उत्तर भारत की हिंदू परंपरा से संबंध रखती हैं, लेकिन उनकी कृष्ण भक्ति न केवल सम्पूर्ण भारत में अपितु दूसरे देश में भी जानी जाती है। मीराबाई का जन्म भारत के राजस्थान के पाली के कुंडकी जिले के एक राजपूत शाही परिवार में हुआ था। मीराबाई न केवल कृष्ण की भक्त हैं अपितु उनके द्वारा रचित काव्य उन्हें श्रेष्ठ कवयित्री के रूप में भी दर्शाता है। उनका व्यक्तित्व इस प्रकार निखर कर बाहर आया कि सभी के लिए प्रेरणादायी बन गया। मीराबाई और उनके जीवन की कहानियाँ विभिन्न प्रकार की कलाओं जैसे पेंटिंग, मूर्तिकला आदि…

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    भारतीय संस्कृति की परंपरागत कला – कोलम (रंगोली)

    संस्कृति व कला के लिए भारत का विश्व में शीर्षस्थ स्थान है और इसका एक उदाहरण तमिलनाडु की प्राचीन परंपरा ‘कोलम’ के रूप में देख सकते हैं जिसे रंगोली भी कहते हैंl कोलम, तमिलनाडु में महिलाएं प्रतिदिन अपने घर के सामने एवं पूजा गृह में बनाती हैंl रंगोली शब्द संस्कृत के ‘रंगावल्ली’ शब्द से उद्धृत हैl भिन्न-भिन्न राज्यों में इसे अलग -अलग नामों से जाना जाता है: तमिलनाडु में कोलम, महाराष्ट्र में रंगोली, कर्नाटक में रंगवल्ली, उत्तरांचल में ऐमण, आंध्र प्रदेश में मुग्गु, केरल में अत्तप्पू आदि l प्राचीन काल से ही लोगों का विश्वास था कि कलात्मक चित्र शुभ के प्रतीक व धन्य -धान्य के परिचायक होते हैंl कोलम…