श्रेष्ठ कवियों की श्रेष्ठ कविताएँ

  • श्रेष्ठ कवियों की श्रेष्ठ कविताएँ

    कटे हाथ – अशोक चक्रधर

    बगल में एक पोटली दबाएएक सिपाही थाने में घुसाऔर सहसाथानेदार को सामने पाकरसैल्‍यूट माराथानेदार ने पोटली की तरफ निहारासैल्‍यूट के झटके में पोटली भिंच गईऔर उसमें से एक गाढ़ी-सी कत्‍थई बूंद रिस गईथानेदार ने पूछा:‘ये पोटली में से क्‍या टपक रहा है ?क्‍या कहीं से शरबत की बोतलेंमार के आ रहा है ?सिपाही हड़बड़ाया, हुजूर इसमें शरबत नहीं हैशरबत नहीं हैतो घबराया क्‍यों है, हद हैशरबत नहीं है, तो क्‍या शहद है?सिपाही काँपा, सर शहद भी नहीं हैइसमें से तोकुछ और ही चीज बही हैऔर ही चीज, तो खून है क्या?अबे जल्‍दी बताक्‍या किसी मुर्गे की गरदन मरोड़ दीक्‍या किसी मेमने की टांग तोड़ दीअगर ऐसा है तो बहुत अच्‍छा…

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    प्यार की कहानी चाहिए
    कवि- गोपालदास “नीरज”

    आदमी को आदमी बनाने के लिएजिंदगी में प्यार की कहानी चाहिएऔर कहने के लिए कहानी प्यार कीस्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए। जो भी कुछ लुटा रहे हो तुम यहाँवो ही बस तुम्हारे साथ जाएगा,जो छुपाके रखा है तिजोरी मेंवो तो धन न कोई काम आएगा,सोने का ये रंग छूट जाना हैहर किसी का संग छूट जाना हैआखिरी सफर के इंतजाम के लिएजेब भी कफन में इक लगानी चाहिएआदमी को आदमी बनाने के लिएजिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए। रागिनी है एक प्यार कीजिंदगी कि जिसका नाम हैगाके गर कटे तो है सुबहरोके गर कटे तो शाम हैशब्द और ज्ञान व्यर्थ हैपूजा-पाठ ध्यान व्यर्थ हैआँसुओं को गीतों में बदलने के…

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    आओ फिर से दिया जलाएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

    आओ फिर से दिया जलाएँ।भरी दुपहरी में अँधियारासूरज परछाई से हाराअंतरतम का नेह निचोड़ें-बुझी हुई बाती सुलगाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ। हम पड़ाव को समझे मंज़िललक्ष्य हुआ आँखों से ओझलवर्त्तमान के मोहजाल में-आने वाला कल न भुलाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ। आहुति बाकी यज्ञ अधूराअपनों के विघ्नों ने घेराअंतिम जय का वज़्र बनाने-नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ।

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    एक वृक्ष की हत्या – कुँवर नारायण

    अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था—वही बूढ़ा चौकीदार वृक्षजो हमेशा मिलता था घर के दरवाज़े पर तैनात। पुराने चमड़े का बना उसका शरीरवही सख़्त जानझुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैला-कुचैला,राइफ़िल-सी एक सूखी डाल,एक पगड़ी फूल पत्तीदार,पाँवों में फटा-पुराना जूताचरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता धूप में बारिश मेंगर्मी में सर्दी मेंहमेशा चौकन्नाअपनी ख़ाकी वर्दी में दूर से ही ललकारता, “कौन?”मैं जवाब देता, “दोस्त!”और पल भर को बैठ जाताउसकी ठंडी छाँव में दरअसल, शुरू से ही था हमारे अंदेशों मेंकहीं एक जानी दुश्मनकि घर को बचाना है लुटेरों सेशहर को बचाना है नादिरों सेदेश को बचाना है देश के दुश्मनों सेबचाना है—नदियों को नाला हो जाने सेहवा को धुआँ हो जाने सेखाने को…

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    धीरे-धीरे
    – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

    भरी हुई बोतलों के पासख़ाली गिलास-सामैं रख दिया गया हूँ। धीरे-धीरे अँधेरा आएगाऔर लड़खड़ाता हुआमेरे पास बैठ जाएगा।वह कुछ कहेगा नहींमुझे बार-बार भरेगाख़ाली करेगा,भरेगा—ख़ाली करेगा,और अंत मेंख़ाली बोतलों के पासख़ाली गिलास-साछोड़ जाएगा। मेरे दोस्तो!तुम मौत को नहीं पहचानतेचाहे वह आदमी की होया किसी देश कीचाहे वह समय की होया किसी वेश की।सब-कुछ धीरे-धीरे ही होता हैधीरे-धीरे ही बोतलें ख़ाली होती हैंगिलास भरता है,हाँ, धीरे-धीरे हीआत्मा ख़ाली होती हैआदमी मरता है। उस देश का मैं क्या करूँजो धीरे-धीरे लड़खड़ाता हुआमेरे पास बैठ गया है। मेरे दोस्तो!तुम मौत को नहीं पहचानतेधीरे-धीरे अँधेरे के पेट मेंसब समा जाता है,फिर कुछ बीतता नहींबीतने को कुछ रह भी नहीं जाताख़ाली बोतलों के पासख़ाली गिलास-सा सब…

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    देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता
    – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

    यदि तुम्हारे घर केएक कमरे में आग लगी होतो क्या तुमदूसरे कमरे में सो सकते हो?यदि तुम्हारे घर के एक कमरे मेंलाशें सड़ रहीं होंतो क्या तुमदूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?यदि हाँतो मुझे तुम सेकुछ नहीं कहना है। देश कागज पर बनानक्शा नहीं होताकि एक हिस्से के फट जाने परबाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहेंऔर नदियां, पर्वत, शहर, गांववैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखेंअनमने रहें।यदि तुम यह नहीं मानतेतो मुझे तुम्हारे साथनहीं रहना है। इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ाकुछ भी नहीं हैन ईश्वरन ज्ञानन चुनावकागज पर लिखी कोई भी इबारतफाड़ी जा सकती हैऔर जमीन की सात परतों के भीतरगाड़ी जा सकती है। जो विवेकखड़ा हो…