कविता

*अंधेरा*

उजाले की चाहत
तारों सी चमचमाहट
सूरज का तेज
हर किसी को पाने की तमन्ना,
परंतु मुझे अंधेरों से प्यार l
उसका आत्मविश्वास कि
सूरज का तेज
उसके अस्तित्व को बनाए रखेगा,
अंधेरा विस्मय हो या
सूरज अस्तमय
उसे गर्व है कि
रोशन उसका ही जहां होगा
जब प्रभात की सुनहरी लालिमा में
तिल – तिल घुलेगा,
लौटेगा फिर अपने जहां में
कुछ खोने का भय ना होगा l

इस रोशन जहां में
जागने की बात सब करते हैं
जहां प्रकाश
वाह्य आवरण छूती है,
मैं तो वह अंधेरा हूं
जो अंधेरे में ही सबको
रोशन करती हूं l
मेरे बिना उसका वजूद ना होगा,
नकारते हो मुझे, दुत्कारते हो मुझे
अरे! मैं ना हुआ तो
रोशन ये जहां ना होगा l

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