कविता

प्रेम

प्रेम
फूलों से हर किसी को
एक बार कांटे से भी कर लो चुभन तुम्हारी दूर न कर दूं
तो कहना….

प्रेम
बरसात से हर किसी को
एक बार सूखे से भी कर लो
न चाहत का एहसास दिला दूं
तो कहना….

प्रेम
हवाओं से हर किसी को
एक बार निर्वात से भी कर लो
न शांत स्वरुप दिखा दूं
तो कहना….

प्रेम
नदियों से हर किसी को
एक बार नाले से भी कर लो
न दुख का एहसास दिला दूं
तो कहना….

प्रेम
नरम दिल से हर किसी को
एक बार पत्थर दिल से भी कर लो
ताकत से तुझे न भर दूं
तो कहना….

प्रेम
परमात्मा से सबको
हर इंसान से भी कर लो
धरती को स्वर्ग न बना दूं
तो कहना….

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