मानक हिंदी

देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण

हिंदी भारतीय संघ तथा हिंदी-भाषी राज्यों की राजभाषा है। हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। इसे नागरी लिपि भी कहते हैं। किसी भी भाषा के प्रचार-प्रसार को सरल बनाने के लिए यह जरूरी है कि उस भाषा का प्रयोग करने वाले सभी लोग एक ही तरह के अंक और वर्ण प्रयोग में लाएं। साथ ही, यह भी आवश्यक है कि शब्द विशेष को सभी लोग एक ही तरीके से लिखें। ऐसा न होने से भाषा में अराजकता आ जाती है और उसका कोई मानक रूप नहीं रह जाता। हिंदी के संदर्भ में इस कमी को दूर करने के लिए केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार ने शीर्षस्थ विद्वानों आदि के साथ वर्षों के विचार-विमर्श के पश्चात हिंदी वर्णमाला तथा अंको का जो मानक स्वरूप निर्धारित किया, वह इस प्रकार है:

मानक हिंदी वर्णमाला
स्वर-
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ

अनुस्वार-
अं

विसर्ग-
: (अः)

व्यंजन-
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण ड़ ढ़
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह

संयुक्त व्यंजन-
क्ष त्र / ज्ञ श्र

हल् चिह्‍न-
ड्

गृहीत स्वन-
ऑ, ख़, ज़, फ़

देवनागरी अंक-
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०

भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप-
1 2 3 4 5 6 7 8 9 0


हिंदी वर्तनी का मानकीकरण

एक ही स्वन को प्रकट करने के लिए विभिन्न वर्णों का प्रयोग वर्तनी को जटिल बना देता है और यह लिपि का एक सामान्य दोष माना जाता है। देवनागरी लिपि में यह दोष बहुत कम पाया जाता है, लेकिन उसकी अपनी विशेषता कठिनाइयां भी है। भारत सरकार ने इस तरह की कठिनाइयों को दूर करने के लिए और हिंदी वर्तनी में एकरूपता लाने के लिए सन् 1961 में एक विशेष समिति नियुक्त की थी। अप्रैल 1962 में समिति ने अपनी अंतिम सिफारिशें पेश कीं, जिन्हें सरकार ने मान लिया।

हिन्दी की वर्तनी के विविध पहलुओं को लेकर १९वीं शताब्दी के अन्तिम चरण से ही विविध प्रयास होते रहे हैं। इसी तारतम्य में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा वर्ष 2003 में देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी के मानकीकरण के लिए अखिल भारतीय संगोष्ठी का आयोजन किया था। इस संगोष्ठी में मानक हिंदी वर्तनी के लिए निम्नलिखित नियम निर्धारित किए गए थे जिन्हें सन २०१२ में आईएस/IS 16500 : 2012 के रूप में लागू किया गया है।

वर्ष 1968 के मानकीकरण का मुख्य आधार प्रयोक्‍ता और टंकण यंत्र रहा था। सूचना के आज के युग में हिंदी भाषा के मानकीकरण को पुन: संशोधित एवं परिवर्तित करने तथा देवनागरी लिपि के लिए कंप्यूटरीकृत यूनीकोड के निर्माण करने की आवश्यकता अनुभव की गई। इसी तारतम्य में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा वर्ष 2003 में देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी के मानकीकरण के लिए अखिल भारतीय संगोष्ठी का आयोजन किया था। इस संगोष्ठी में मानक हिंदी वर्तनी के लिए जो नियम निर्धारित किये गये थे उनका विवरण नीचे दिया गया है।“देवनागरी लिपि और हिंदी वर्तनी का मानकीकरण” पुस्तिका में मानक हिंदी वर्णमाला, मानक हिंदी वर्तनी, विरामादि चिह्न, कोशों में अकारादिक्रम, परिवर्धित देवनागरी लिपि आदि विषय तथा पैराग्राफ़ों के विभाजन तथा उपविभाजन से संबंधित मानक दी गई है।

आईएस/IS 16500 : 2012 की प्रमुख बातें:

1. संयुक्‍त वर्ण

1.1 खड़ी पाई वाले व्यंजन

खड़ी पाई वाले व्यंजनों के संयुक्‍त रूप परंपरागत तरीके से खड़ी पाई को हटाकर ही बनाए जाएँ। यथा:–

ख्याति, लग्न, विघ्न, कच्चा, छज्जा, नगण्य, कुत्‍ता, पथ्य, ध्वनि, न्यास, प्यास, डिब्बा, सभ्य, रम्य, शय्या, उल्लेख, व्यास, श्‍लोक, राष्ट्रीय, स्वीकृति, यक्ष्मा, त्र्यंबक

1.2 अन्य व्यंजन
1.2.1 क और फ/फ़ के संयुक्‍ताक्षर

संयुक्‍त, पक्का, दफ़्तर आदि की तरह बनाए जाएँ, न कि संयुक्त, (पक्का लिखने में क के नीचे क नहीं) की तरह।

1.2.2 ङ, छ, ट, ड, ढ, द और ह के संयुक्‍ताक्षर हल् चिह्‍न लगाकर ही बनाए जाएँ। यथा:–
वाङ्मय, लट्टू, बुड्ढा, विद्‍या, चिह्‍न, ब्रह्‍मा आदि। (वाङ्मय, बुड्ढा, विद्या, चिह्न, ब्रह्मा नहीं)

1.2.3 संयुक्‍त ‘र’ के प्रचलित तीनों रूप यथावत् रहेंगे। यथा:– प्रकार, धर्म, राष्ट्र।

1.2.4 श्र का प्रचलित रूप ही मान्य होगा। इसे … (इसे मैं टाइप नहीं कर पा रहा हूँ। क्र में क के बदले श लिखा मान लें) के रूप में नहीं लिखा जाएगा। त+र के संयुक्‍त रूप के लिए पहले त्र और … (इसे मैं टाइप नहीं कर पा रहा हूँ। क्र में क के बदले त लिखा मान लें) दोनों रूपों में से किसी एक के प्रयोग की छूट दी गई थी। परंतु अब इसका परंपरागत रूप त्र ही मानक माना जाए। श्र और त्र के अतिरिक्‍त अन्य व्यंजन+र के संयुक्‍ताक्षर 1.2.3 के नियमानुसार बनेंगे। जैसे :– क्र, प्र, ब्र, स्र, ह्र आदि।

1.2.5 हल् चिह्‍न युक्‍त वर्ण से बनने वाले संयुक्‍ताक्षर के द्‍‌वितीय व्यंजन के साथ इ की मात्रा का प्रयोग संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे युग्म से पूर्व। यथा:– कुट्‌टिम, चिट्‌ठियाँ, द्‌वितीय, बुद्‌धिमान, चिह्‌नित आदि (कुट्टिम, चिट्ठियाँ, द्‍‌वितीय, बुद्‍धिमान, चिह्‍नित नहीं)।

टिप्पणी : संस्कृत भाषा के मूल श्‍लोकों को उद्‍धृत करते समय संयुक्‍ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे। जैसे:– संयुक्त, चिह्न, विद्या, विद्वान, वृद्ध, द्वितीय, बुद्धि आदि। किंतु यदि इन्हें भी उपर्युक्‍त नियमों के अनुसार ही लिखा जाए तो कोई आपत्‍ति नहीं होगी।

2. कारक चिह्‍न

2.1 हिंदी के कारक चिह्‍न सभी प्रकार के संज्ञा शब्दों में प्रातिपदिक से पृथक् लिखे जाएँ। जैसे :– राम ने, राम को, राम से, स्त्री का, स्त्री से, सेवा में आदि। सर्वनाम शब्दों में ये चिह्‍न प्रातिपादिक के साथ मिलाकर लिखे जाएँ। जैसे :– तूने, आपने, तुमसे, उसने, उसको, उससे, उसपर आदि (मेरेको, मेरेसे आदि रूप व्याकरण सम्मत नहीं हैं)।

2.2 सर्वनाम के साथ यदि दो कारक चिह्‍न हों तो उनमें से पहला मिलाकर और दूसरा पृथक् लिखा जाए। जैसे :– उसके लिए, इसमें से।

2.3 सर्वनाम और कारक चिह्‍न के बीच ‘ही’, ‘तक’ आदि का निपात हो तो कारक चिह्‍न को पृथक् लिखा जाए। जैसे :– आप ही के लिए, मुझ तक को।

3 क्रिया पद

संयुक्‍त क्रिया पदों में सभी अंगीभूत क्रियाएँ पृथक्-पृथक् लिखी जाएँ। जैसे :– पढ़ा करता है, आ सकता है, जाया करता है, खाया करता है, जा सकता है, कर सकता है, किया करता था, पढ़ा करता था, खेला करेगा, घूमता रहेगा, बढ़ते चले जा रहे हैं आदि।

4 हाइफ़न (योजक चिह्‍न)

4.0 हाइफ़न का विधान स्पष्टता के लिए किया गया है।

4.1 द्‍वंद्‍व समास में पदों के बीच हाइफ़न रखा जाए। जैसे :– राम-लक्ष्मण, शिव-पार्वती संवाद, देख-रेख, चाल-चलन, हँसी-मज़ाक, लेन-देन, पढ़ना-लिखना, खाना-पीना, खेलना-कूदना आदि।

4.2 सा, जैसा आदि से पूर्व हाइफ़न रखा जाए। जैसे :– तुम-सा, राम-जैसा, चाकू-से तीखे।

4.3 तत्पुरुष समास में हाइफ़न का प्रयोग केवल वहीं किया जाए जहाँ उसके बिना भ्रम होने की संभावना हो, अन्यथा नहीं। जैसे :– भू-तत्व। सामान्यत: तत्पुरुष समास में हाइफ़न लगाने की आवश्यकता नहीं है। जैसे :– रामराज्य, राजकुमार, गंगाजल, ग्रामवासी, आत्महत्या आदि।

4.3.1 इसी तरह यदि ‘अ-निख’ (बिना नख का) समस्त पद में हाइफ़न न लगाया जाए तो उसे ‘अनख’ पढ़े जाने से ‘क्रोध’ का अर्थ भी निकल सकता है। अ-नति (नम्रता का अभाव) : अनति (थोड़ा), अ-परस (जिसे किसी ने न छुआ हो) : अपरस (एक चर्म रोग), भू-तत्व (पृथ्वी-तत्व) : भूतत्व (भूत होने का भाव) आदि समस्त पदों की भी यही स्थिति है। ये सभी युग्म वर्तनी और अर्थ दोनों दृष्टियों से भिन्न-भिन्न शब्द हैं।

4.4 कठिन संधियों से बचने के लिए भी हाइफ़न का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे :– द्‍‌वि-अक्षर (द्व्यक्षर), द्‍‌वि-अर्थक (द्व्यर्थक) आदि।

5 अव्यय

5.1 ‘तक’, ‘साथ’ आदि अव्यय सदा पृथक् लिखे जाएँ। जैसे :– यहाँ तक, आपके साथ।

5.2 आह, ओह, अहा, ऐ, ही, तो, सो, भी, न, जब, तब, कब, यहाँ, वहाँ, कहाँ, सदा, क्या, श्री, जी, तक, भर, मात्र, साथ, कि, किंतु, मगर, लेकिन, चाहे, या, अथवा, तथा, यथा और आदि अनेक प्रकार के भावों का बोध कराने वाले अव्यय हैं। कुछ अव्ययों के आगे कारक चिह्‍न भी आते हैं। जैसे :– अब से, तब से, यहाँ से, वहाँ से, सदा से आदि। नियम के अनुसार अव्यय सदा पृथक् लिखे जाने चाहिए। जैसे :– आप ही के लिए, मुझ तक को, आपके साथ, गज़ भर कपड़ा, देश भर, रात भर, दिन भर, वह इतना भर कर दे, मुझे जाने तो दो, काम भी नहीं बना, पचास रुपए मात्र आदि।

5.3 सम्मानार्थक ‘श्री’ और ‘जी’ अव्यय भी पृथक् लिखे जाएँ। जैसे श्री श्रीराम, कन्हैयालाल जी, महात्मा जी आदि (यदि श्री, जी आदि व्यक्‍तिवाची संज्ञा के ही भाग हों तो मिलाकर लिखे जाएँ। जैसे :– श्रीराम, रामजी लाल, सोमयाजी आदि)।

5.4 समस्त पदों में प्रति, मात्र, यथा आदि अव्यय जोड़कर लिखे जाएँ (यानी पृथक् नहीं लिखे जाएँ)। जैसे – प्रतिदिन, प्रतिशत, मानवमात्र, निमित्‍तमात्र, यथासमय, यथोचित आदि। यह सर्वविदित नियम है कि समास न होने पर समस्त पद एक माना जाता है। अत उसे व्यस्त रूप में न लिखकर एक साथ लिखना ही संगत है। ‘दस रुपए मात्र’, ‘मात्र दो व्यक्‍ति’ में पदबंध की रचना है। यहाँ मात्र अलग से लिखा जाए (यानी मिलाकर नहीं लिखें)।

सन्दर्भ
“देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण (केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय)”, प्रशासनिक मानक हिंदी, भाषा संकाय (लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी), मसूरी, विकिपीडिया

2 Comments

  • Shiv Shankar Sharma

    हिंदी भाषा विज्ञान से देश की राष्ट्रभाषा को समृद्धि बनाने एवं सशक्त बनाने के लिए यह जा रहे प्रयासों के लिए धन्यवाद

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