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सृष्टि की श्रेष्ठ रचना
नारी एक ऐसा रहस्य है जिसे सभी ने अपने -अपने दृष्टिकोण से जानने का प्रयास किया। वेद-पुराणों और शास्त्रों में उसका स्थान सर्वोपरि बताया गया है।“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है। वह संपूर्ण सृष्टि में एकमात्र ऐसी रचना है जो प्रेम, करुणा, दया, धैर्य, सहनशीलता, क्षमा आदि सद्गुणों से पूर्ण है। जिसे वह अर्जित नहीं करती अपितु यह उसके मूल प्रवृति में समाहित होते हैं। वह इन गुणों के साथ जहां भी वास करती है वह स्थान पवित्र, सुखमय, आनंदपूर्ण, वैभवशाली, समृद्धि, शांतिपूर्ण में परिवर्तित हो जाता है। नारी अपने इतने रूपों को धारण करती है कि संसार में उसके समान…
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संत साहित्य की वर्तमान प्रासंगिकता (संत रामानन्द)
संत रामानन्द कहते हैं अति किसी की भी अच्छी नहीं होती, बदलाव संसार का नियम है…. ऐसे ही एक बदलाव की आवश्यकता थी समाज को जब जाति-पाँति, ऊंच-नीच, छुआ-छूत जैसी बीमारियों ने चारों ओर अपने पैर फैला लिए थे। सांप्रदायिकता, धर्म- अधर्म और धर्म बदलाव जैसे घातक विचार से समाज ग्रसित हो रहा था। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है;यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥१धर्म की हानि हो और ईश्वर चुपचाप देखता रहे, ऐसा असंभव है! अतः समाज में बदलाव होना ही था और इस बदलाव का बीज बोया संत रामानंद जी ने, जो ईश्वर के अवतार रूप में प्रकट हुए। बुद्ध हो या महावीर,…
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अपने दम पर
करना हो कुछ,अपने दम पर करो !दूसरों पर भरोसा,थका देगा, हरा देगा,अपने दम पर हीरास्ता तय होगामंजिल तक पहुंचने का । साथ,बीच में छूट जाएगातुम्हें भटकाएगा,रह जाओगे अकेलेकिसी सुनसान वीराने में,जहाँ स्वयं को ढूंढ़नाआसान न होगा ।
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दो शब्द नहीं…
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सागर में लीन
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सुखी और संपन्न भारत की प्रतीक : गौ माता
तुल्यनामानि देयानी त्रीणि तुल्यफलानि च।सर्वकामफलानीह गाव: पृथ्वी सरस्वती।। (महाभारत, अनु. ६९/४) अर्थात गाय, भूमि और सरस्वती, तीनों नाम एक समान हैं। तीनों का दान करने से समान फल की प्राप्ति होती है। यह तीनों मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूरा करती हैं। परंतु आज ये तीनों दान लगभग समाप्त हो चुके हैं। शायद यही कारण है कि आज काल के विकराल रूप की भयावह स्थिति में सभी कामनाएं विफल हो रही हैं। जिस गृह में गौ माता का वास है, वहां कोई भी विषाणु का प्रवेश नहीं हो सकता। गाय के आसपास का स्थान सदा शुद्ध रहता है। वहाँ, गौमूत्र और गोबर से उत्सर्जित गंध, आस-पास की जहरीली वायु को अवशोषित…
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नाता
कहाँ किसका किससे क्या नाता है? एक आता और एक जाता है। बस एक तथ्य सत्य बताता है, हम सबको वो ‘एक’ ही बनाता है, इस नाते आपका और हमारा, बड़ा गहरा और दिव्य नाता है।
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जोड़
आज-कल सब कुछबिखरा-बिखरा नज़र आता है,‘जोड़’ तो बसदुगनी शक्ति को दर्शाता है।जुड़ते, जोड़ते यह शक्तियूँही बढ़ती रहे,यही भाव इस जग को सुन्दर बनाता है।
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नारी
रिश्ता है ना नाता हैफिर भी अपनाती हैएक बात पर वहअपने घर से दूसरे घर कीअपनी बन जाती हैहर रिश्ते को निभाती हैअपना सब भूल जाती हैऔर हम समझ ही नहीं पाते उसेजो स्वयं संसार को चलाती है….।
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*सत्य रूप छलता गया *
जब किया प्रवेश नव संसार में, शून्य थी विचार में, शांत थी स्वभाव में। खुले जो यह पटल, सब कुछ अनजान सा चौंधयायी मैं, पर कुछ था पहचान सा । स्पर्श जो हुआ, बदली फिर आकार में ध्वनियों ने ऐसे जगाया,खोई फिर से भाव में। वक्त रूप बदलता गया, मेरा भी रूप ढलता गया खोकर माया नगरी में , मेरा सत्य स्वरूप छलता ही गया।